हम बिहारी

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ताऊयहाँपुर... कर्जत की गलियों में (पार्ट -4)

पार्ट-3 के लिए यहाँ जाएँ।

Disclaimer: इस कहानी के पात्र वास्तविक हैं....लेकिन सारी घटनाएँ और संवाद काल्पनिक हैं। हाँ इतना जरूर है कि संवाद लिखते समय मैने पात्र की भाषा और शारीरिक-भाषा दोनों का पूरा ध्यान रखा है। जैसे कि ताऊ का अंदाज वैसा हीं है..जैसा इस कहानी में मालूम पड़ता है। (All the characters mentioned in this story are REAL but incidents and dialogues are fictitious. Even then I have followed the body language and LANGUAGE of all the characters how they look and how they speak in real life. For example, Tau behaves the same way as I have portrayed him in this story.)

पिछली कहानी में बड़ा हीं भारी पाप हो गया मुझसे... मैंने जहाँ-तहाँ इधर-उधर कई सारे चिकन-मटन से परिपूर्ण शब्द डाल दिए थे, और उससे ये हुआ कि "आस्था" और "संस्कार" चैनल से चिपके रहने वाले बाबाओं और बाबा के भक्तों से मुझे इतनी लताड़ पड़ी कि दो महिने "नैतिकता" के अस्पताल में बिताने पड़े। उस अस्पताल में लैपटाप की तो कोई मनाही नहीं थी लेकिन मेरी अंगुलियों ने हाथ खड़े कर दिए। इतनी पिटाई उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी। फिर सोचा कि किसी और से हीं लिखवा लेता हूँ, दिमाग और गला तो काम कर हीं रहे हैं, मैं बोलता रहूँगा और कोई लिखता रहेगा (लिखती रहेगी.. अगर ऐसा होता तो बात हीं कुछ और थी, लेकिन मैं बेमतलब के हवाई महल नहीं बनाता..... वैसे भी मेरा वजन ८१ किलोग्राम है, असली महल में बैठा तो वो टूट जाएगा फिर हवाई महल बनाके अपना हीं कबाड़ा क्यों करना)। सोच तो बेहद सही थी लेकिन तभी दिमाग ने विचारों के कारखाने पर ताला डाल दिया...और कहा कि तुमने अब तक जो भी सोच लिया, सोच लिया , अब सोचने की गलती भी मत करना... क्योकि तुम सही तो सोच नहीं सकते.. और ऊलूल-जुलूल सोचने चले तो अबकि बार ऐसा न हो कि कोई मुझे हीं उठाकर ले जाए और प्रयोगशाला में डाल दे, जिस तरह आईन्स्टीन के दिमाग को डाला हुआ है। आईन्स्टीन.. इतना सुनना था कि मैं अपने हीं दिमाग के सामने नतमस्तक हो गया क्योंकि मुझ तुच्छ को किसी ने सीधे न सही, घुमा-फिराकर हीं आईन्स्टीन तो कहा था, भले हीं वह मेरा हीं दिमाग हो। कुछ होता न देखकर मैं महिने बीतने का इंतज़ार करने लगा। दो महिने बीत गए, पिटाई की बातें पुरानी हो गईं और मैं थोड़ा चलने-कूदने लायक हो गया, लेकिन यह क्या.. बाबा के दूत फिर से अपनी लंगोटी थामे मेरे दुआरे आ गएँ और कहने लगे कि "बालक तुमने अपने पाप की सज़ा तो भुगत ली अब थोड़ा पश्चाताप भी कर लो। जाओ अगले एक महीने तक किसी भी "सविता भाभी" टाईप की वस्तु को देखना या छूना मत और ऐसी चीज़ों के बारे में किसी से कोई चर्चा भी न करना।" अब आप हीं बताओ कि मैं "ताऊयहाँपुर" लिखूँ और उसमें इन बातों का हीं ज़िक्र हीं न हो तो फिर लिखने का क्या फ़ायदा। इसलिए मैने एक महिने तक ब्रह्मचर्य-पालन का निश्चय किया और उस दौरान मैने किसी भी पराई स्त्री (वैसे भी मेरे लिए तो सारी स्त्रियाँ हीं पराई हैं) को बुरी नज़र से नहीं देखा... हाँ पूरी नज़र से ज़रूर देखा(सौजन्य: बाबा संजय मिश्रा उवाच.. गोलमाल रिटर्न्स)। तो भाईयों.. आज के दिन या फिर आज से २-३ दिनों बाद उस बाबा-दूत की मियाद खत्म हो रही है और इसी खुशी में मैं "ताऊयहाँपुर" की चौथी कड़ी लेकर हाज़िर हो रहा हूँ।

अब तक की स्थिति ये है कि ताऊ की फ़ंडापंथी और के की फ़ार्टपंथी बराबर चल रही है.. बीस्ट अपने में हीं मगन है, मणि कन्फ़्यूज्ड है कि कुछ बोलूँ या ना बोलूँ क्योंकि अगर कुछ भी बोला तो लोग गर्लफ़्रेंड-गर्लफ़्रेंड चिल्लाने लगेंगे.. रजनी "द ग्रेट रजनी" की तरह वर्तमान को लात मार के फ्यूचर को टार्चर कर रहा है.. यानि कि अभी एक ट्रेकिंग खत्म हुई नहीं कि अगली ट्रेकिंग के प्लान्स बनाने में जुट गया है.. और अब बचे दो इंसान "पीए" और "वीडी".. ताऊ के फ्लैटमेट्स होने के कारण इन दोनों का ऊपर का हिस्सा खाली हो चुका है. इसलिए इनसे इस बात की उम्मीद हीं नहीं की जा सकती कि ये लोग कुछ भी सोच रहे होंगे। और इन्हीं हालातों में ये सारे रेलगाड़ी से उतरने की जुगत में लगे हुए हैं और लगभग आधे घंटे से लाईन में खड़े हैं|आगे क्या होता है..आप खुद देख लीजिए ।


रेलगाड़ी के जनरल डब्बे में:

रजनी: बीस्ट... बात मान.. रूकवा दे ट्रेन
बीस्ट: स्साला... रूकवा देता.. लेकिन तुम लोग हमारा पावर नहीं जानता है, घूमा तो ट्रेन एक्सीडेंट हो जाएगा।
सब लोग एक साथ: ऊऊऊऊऊऊऊओ..... जे बात..
वीडी: कुछ बोला है!! तू तो दारा सिंह है बे.. दारा सिंह नहीं... वो तो बूढा हो गया. तू तो पाड़ा सिंह है बे...
के: क्या फ़ार्ट है.. पाड़ा सिंह?
वीडी: पाड़ा नहीं जानता... हमरे बिहार में भैंस के बच्चे को पाड़ा कहते हैं..
ताऊ: स्साला...फिर से बकर शुरू कर दिया.. चुप रहने का क्या लोगे?
वीडी: ताई...... हाहाहा
पीए: मचा दिया बे..
मणि: अरे..काहे पका रहे हो
वीडी: गुड कोश्चन..... नेक्स्ट कोश्चन.... हाहाहा
रजनी: वीडी की जय हो... कर दिए तुम्हारी जय-जयकार.....अब तो चुप हो जाओ
ताऊ: स्साले...हमारी तो जय-जयकार करते नहीं... फोकट में हीं चुप करा देते हो. अब से देखते हैं कौन हमको चुप कराता है
पीए: बीस्ट बोलेगा चुप होने को....तब भी नहीं होगा?
ताऊ: हम्म्म.. स्साला सोचना पड़ेगा.. ऐसा-ऐसा सवाल काहे पूछते हो.. अभी एक-दो मिनट खुश रह लेते तो तुम्हारा क्या जाता.
के: ताऊ की ले ली
ताऊ: चुप्प... क्या ले ली... हमको बीस्ट पर पूरा भरोसा है.. वो बस देखने में राक्षस लगता है. असल में है नहीं.. और वैसे भी बीस्ट तीन गलतियाँ माफ़ कर देता है और हमारा तो अभी खाता हीं नहीं खुला है
वीडी: स्साले.. तुम्हारे खाते का हिसाब तो हम रख रहे हैं.. दो दशमलव पाँच हो चुका है.. अभी आधा और गलती किया कि बीस्ट के हाथों धुल जाओगे... है ना बीस्ट?
बीस्ट: हमसे क्या पूछता है... और ये दशमलव क्या होता है..
ताऊ: बता.. साले बता... चला था हीरो बनने
वीडी: छोड़ो... अब फिर से फंडे कौन दे..लोग बोर हो जाएँगे..... बीस्ट.. दशमलव कुछ नहीं होता है.. हम अभी उसका आविष्कार किए हैं.. इसका मतलब जब हमको पता चल जाएगा तो तुमको भी बता देंगे. पीस मारो....
बीस्ट: स्साला.... दिमाग का दही कर दिया.. वीडी साले.... तू इतना बकर कैसे कर लेता है.... कोई कोर्स लिया था क्या?
वीडी: हाँ, लिया नहीं था.. ले रहे हैं.. आज भी उसका क्लास था... छूट गया... तो यहाँ पर उसी का रीविजन कर रहे हैं...
बीस्ट: स्साला... पागल कर देगा..
वीडी: ह्म्म.. "मोहे पागल कर दे" (धीरे से).. अच्छा ये बता बीस्ट..हम जहाँ जा रहे हैं वहाँ पर बाथरूम, ट्वाईलेट, बेड..ये सब होगा ना?
बीस्ट: तू तीरथ पे जा रहा है क्या.. चार धाम.. कुछ नहीं होगा वहाँ.. जंगल में पेड़ के पीछे बैठ जाना... समझा.
वीडी: और सोने का?
बीस्ट: स्साले.... हमारा माथा पर सो जाना......
वीडी: हम्म... गुड आईडिया. लेकिन तेरी खोपड़ी पे बाल तो है नहीं...स्लीप होके गिर गया तो... इसलिए आईडिया कैन्सील..
बीस्ट: पीए....पी.....ए..... इसको चुप करा.... हम सही में फोड़ देगा...
ताऊ: गलत में भी फोड़ता है क्या?
बीस्ट: तेरा नाम पीए है? ... साले तेरे को आईडेंटिटी क्राईसिस हो गया है क्या...
ताऊ: नहीं.... हाहाहा
पीए: स्सालों.... चु*यागिरी मत करो.. चुप हो जाओ..... बीस्ट को काहे तंग कर रहे हो... इसको तंग करने का जन्मसिद्ध अधिकर सिर्फ़ हमारा है
रजनी: आ गएँ एक और. ये तीनों फ़्लैटमेट्स जो हैं ना.. प्लान करके तुम लोग फ़्लैटमेट्स बने थे क्या... कहते हैं ना "राम मिलाए जोड़ी, एक अंधा एक कोढी". वही हाल है तुम तीनों का... बकर पे बकर.. मुँह बंद रखो सालों.
ताऊ: हम्म.... प.प..प..प
के: अब तेरे को क्या हुआ बे
ताऊ(मुँह खोल के): साले.... रजनी बोला..मुँह बंद रखने के लिए.. तो हम मुँह बंद करके बोल रहे थे...
बीस्ट: तुम सब साला.... हमको पता होता कि ट्रेकिंग में मेन्टली टार्चर करेगा... तो हम आता हीं नहीं... और ये साला.... ट्रेन रूक भी नहीं रहा..
रजनी: कैसे रूकेगा.. तुम घूमोगे तभी न रूकेगा... सही में रोक दो ट्रेन को.. हम भी फ़्रस्ट (फ़्रुस्त.. फ़्रस्ट्रेटेड) हो गया
बीस्ट: अब लगता है कि घूमना हीं पड़ेगा
पीए: ना ना मत घूम..मत घूम.. छोड़ दे.. हम सात लोग तो सुपरपावर हैं..बच जाएँगे.. ट्रेन में बाकी भी तो लोग हैं.. उनको कुछ हो गया तो.. उनका इन्स्युरेंश है भी कि नहीं..पता नहीं... इसलिए तू पीस मार.. माफ़ कर दे सबको।
बीस्ट: नहीं करेगा माफ़..मज़ाक चल रहा है..
वीडी: बीस्ट.. ऐसे नहीं......ऐसे बोल.. "मज़ाक किया गया था क्या हमारे साथ" हाहाहा
बीस्ट: उफ़्फ़्फ़..

२ मिनट बाद:

मणि: आ गया कर्जत
बीस्ट: थैंक गौड....
रजनी: उतरो सालों.. के... उतर.... सो गया क्या?
के: आगे वाला उतरेगा तब...... क्या फ़ार्ट है!!

कर्जत स्टेशन के बाहर:

रजनी(वीडी से): ताऊ कहाँ गया?
वीडी: हमको क्या पता.. स्साला...वो ट्रेन से उतरा था कि नहीं?
पीए: उतरा तो था....हमारे आगे हीं था.. उसको हम ढकेल के उतारे थे
के: अरे कहाँ रूक गए तुम लोग... जल्दी करो.. रजनी.... अरे आ जा भाई.. तेरे को हीं पता है कि कहाँ जाना है और कैसे जाना है
रजनी: कैसे जाना है? मैं यहाँ पहले थोड़े हीं आया हूँ.. पता करते-करते जाना होगा
मणि: तो तेरे को कुछ पता हीं नहीं है. ऐसे हीं प्लान बनाते रहता है.. रात के दस बज रहे हैं.... और हम लोग बिना पेंदी के लोटा के जैसे कर्जत में पहुँच गए हैं. रजनी साले... पूछ किसी से...
पीए: सालों.... वो सब बाद में सोचना...पहले ये तो देखो कि ताऊ कहाँ खो गया
बीस्ट: साला.... सही हुआ... कोई उसको किडनैप कर लिया हो तो अच्छा... एक मुसीबत तो खत्म होगा
पीए: किडनैप काहे करेगा बे..
बीस्ट: साला.....हम किडनैपर है?... जो करेगा. वही बताएगा ना कि काहे करेगा..
के: तुमको लगता है कि ताऊ को किडनैप करने वाला कोई पैदा लिया है?
रजनी: ये कौन-सी नई कहानी है..
मणि: शायद ताऊ किडनैप हो गया..
रजनी: किडनैप.. और तू आराम से बोल रहा है... तेरी फ़िलिंग्स, तेरे इमोशन्स. सिर्फ़ तेरी गर्लफ़्रेंड के लिए होते हैं क्या. लड़्की मिली नहीं कि दोस्त को पी०एस०आई मारना शुरू
मणि: पी एस आई?
पीए: पी एस आई....माने.. पहचानने से इनकार... और के...तू..तू क्या बोल रहा था कि ताऊ को कोई किडनैप नहीं कर सकता.. काहे?
के: ताऊ उसका इतना के०सी० करेगा कि किडनैपर के कान से खून निकल आएगा..
मणि: अब ये साला के०सी० क्या होता है.... ये "के" का अपना लिंगो है क्या?
रजनी: नहीं बे.. ये हर जगह का लिंगो है.. तू दूसरे लोगों से मिलेगा..बात करेगा..तो न जानेगा.
मणि: बोलोगे साले..
पीए: के सी..मतलब... कान चो*ना
वीडी: यानि कि अपनी वाणी अपनी जिह्वा से सामने वाले इंसान की कानों का बलात्कार कर देना... समझे बुरबक....
रजनी: क्या बात है कवि महोदय...हम तो आपके पंखा हो गए..
वीडी: ठीक है तो आज रात से ड्यूटी पर लग जाना... हमारे रूम में जो पंखा है वो गंदा हो गया है. उसको उतारके तुम्हीं को टाँग देंगे..
पीए: तब तो वो देख लेगा कि तुम रात भर क्या करते हो
वीडी: तो देखके करेगा भी क्या.. अकेले में हम वही करते हैं जो वो करता है या तुम करते हो.. हमारी न शादी हुई है और न गर्लफ़्रेंड है कि कुछ अलग करेंगे... हाँ ना बीस्ट..
बीस्ट: हाँ कि ना?
के: सालों.....मेरी पूरी बात सुनोगे.... बीच में अपनी रामायण शुरू कर देते हो..
वीडी: यानि कि अपना ताऊ सीता मैया है और किडनैपर रावण..यही ना..
पीए: वाह वीडी... तेरे पास भी दिमाग है.. ताऊ विल भी सो प्राउड आफ़ यू
मणि: ताऊ विल भी प्राउड आफ़ वी डी... बट वाई?
पीए: सोचो सोचो..हम पहले हीं ये बात बता चुके हैं
रजनी: तुम लोग "के" को बोलने दोगे? .. जब देखो अपनी पोथी खोलके बैठ जाते हो
वीडी: सौरी के.. कैरी औन..
पीए: वाह वीडी... तुम तो अंग्रेजी भी सीख गए..
मणि: ताऊ विल भी सो प्राउड आफ़ हिम.....यही ना? अब हम भी समझ गए.. सही है वीडी भाई.. लगे रहो
वीडी: थैंक्स.. वैसे क्या समझे तुम?
मणि: यही कि तुम भगवान राम हो... हाहाहा
पीए: ये क्या समझा बे.. चल.. कुछ भी समझा. इतना तो कन्फ़र्म हो गया कि तेरा दिमाग अभी भी काम करता है
मणि: अभी भी मतलब?
बीस्ट: मतलब कुछ नहीं... तुम काहे इनकी बातों में आ जाता है... और.. के.. तुम रूक काहे जाता है बीच में.. तुमको मैनुअली स्टार्ट करना पड़ेगा क्या कि एक्स्लेटर दबाना पड़ेगा... अभी बोलेगा....... या फिर हमसे पिटने के बाद?
के: बोलता हूँ.. बोलता हूँ.. तो होगा ये कि ताऊ किडनैपर को इतना पका देगा कि आखिर हार मानके किडनैपर उसके सामने सरेंडर हीं कर देगा... बोलेगा कि प्रभु अभी तक आप कहाँ थे? अगर आप हमें पहले मिल गए होते तो बंदूक, चाकू, रस्सी ये सब खरीदने का हमारा खर्चा हीं बच जाता.. जिसको किडनैप करना होता हम उसके पास आपको भेज देते फिर वो इंसान तो खुशी-खुशी हमारे कब्ज़े में आ जाता...
वीडी: हाहाहा.... फिर ताऊ क्या बोलेगा?
के: ये तो ताऊ से हीं पूछना पड़ेगा क्योंकि ताऊ के डायलोग्स कोई और नहीं लिख सकता.. इतनी कैपिबिलिटी किसी में नहीं है
पीए: साला.. के तो ताऊ का फ़ैन हो गया
रजनी: फ़ैन-वैन कुछ नहीं हुआ है.. ये तो अपना भड़ास निकाल रहा है.. ताऊ के सामने कुछ बोल तो पाता नहीं है.. अभी-अभी इसको मौका मिला है तो सोच रहा है कि ज़िदगी भर की बकर अभी हीं कर लें
बीस्ट: अरे सही रजनी... तुमको तो पता है कि भड़ास कैसे निकालते हैं... हम जानता है कि तुम भी ताऊ के सामने नहीं बोल पाता
मणि: बीस्ट तो सब जानता है... ..सौरी बीस्ट.. बहुत देर से कुछ बोलने का सोच रहे थे.... तुम हीं पर बोल दिए.. सौरी
वीडी: डर गया.. डर गया.... मणि डर गया

कौन मर गया बे? हम कुछ देर के लिए दो नंबर क्या गए... तुम लोग पूरा कर्ज़त माथा पे उठा लिए... - ताऊ पीछे से आते हुए
वीडी: पूरा कर्ज़त नहीं उठाए थे.. तुम जिस ट्वाईलेट में गया था.. वो ट्वाईलेट छोड़के बाकी का कर्ज़त उठाए थे और वो भी बीस्ट के माथे पे..... सौरी वहाँ तो बाल हीं नहीं.. स्लीप कर जाएगा... रजनी के माथे पे.. वैसे स्स्साले तुम जाने से पहले बता नहीं सकते थे?
पीए: हाँ ताऊ स्साले.. तुम तो हमारे आगे हीं निकले थे ...फिर सडेनली किस खोह में घुस गए..
ताऊ: कौन बोला बे?... (पी ए को देखकर) तुमको बोले नहीं थे?
पीए: कब बोले?
ताऊ: बोले तो थे कि हमारा बैग पकड़ो... लेकिन तुम तो हो हीरो.. बाल सँवारने से फुरसत मिले तो हमारी सुनोगे या फिर हमारा बैग पकड़ोगे.. स्साले कोई बंदी भी तो नहीं थी.... फिर तुम किस "माल-दर्शन" में अटक गए थे?
पीए: वाह वाह... तुम "बैग पकड़ो" कहोगे और हम समझ जाएँगे कि तुम्हें हल्का होना है... हाँ हम ये समझ रहे थे कि तुमको अपने शरीर को हल्का करना है इसलिए नहीं लिए कि हम कोई कुली हैं... "हल्का होना है" -ये तो बताना पड़ेगा ना........ और साले जब तुमको दो नंबर जाना हीं था तो ट्रेन में काहे नहीं गए.. हम लोगों का भी फ़ायदा हो जाता कि तुम्हारी बकर नहीं सुननी पड़ती... कहीं तुम हीं तो "माल-दर्शन" पे नहीं चले गए थे.... बोलो.... बोलो बे...
ताऊ: हाँ.. हम गए थे "माल-दर्शन" पर, लेकिन हम जो माल देखें वो बस हम हीं देखते हैं..तुम लोगों के लिए नहीं है..
रजनी: स्साला.. डबल मिनिंग
ताऊ: डबल मिनिंग? स्साला हम तो सिंगल मिनिंग हीं सोचके बोले थे.. दूसरा मिनिंग क्या है..
वीडी: अच्छा.... मतलब कि तुम डायरेक्टली बोले थे.. गंदे इंसान..
ताऊ: सालों.. मुँह में उंगली डालोगे तो हम प्युक हीं न मारेंगे, उल्टी हीं नहीं करेंगे.. फिर गंदा इंसान, गंदा बात ये सब तो होगा हीं
पीए: माफ़ी... ताऊ... माफ़ी... दया करो...दया
रजनी: दया... दरवाजा तोड़ दो..
के: क्या फ़ार्ट है...
मणि: अहा... सी०आई०डी०
वीडी: अरे ये भी बूझ गया.... माईंड ब्लोविंग.. तो अब अपने ग्रुप में एवरेज दिमाग बढ गया... पार्टी..
मणि: मतलब?
वीडी: लो.. और इस तरह एवरेज फिर से घट गया... मम्मी..
बीस्ट: ताऊ साले.... तुम नहीं था तो हम क्या-क्या सोच लिया था? ये तो अच्छा है कि हम लोग कहीं पता करने नहीं गया..
ताऊ: तो सालों.. इसमें मेरी गलती है... हम तो निश्चिंत थे कि हमने पीए को बता दिया है और वो तुम लोगों को बता देगा..
वीडी: पीए साला.... इसके कारण हम लोग टेंशन में आ गए.. हमारा तो सोच-सोच के डिहाइड्रेशन हो गया.. वज़न भी घट गया.
पीए: तो अच्छा है ना.. थोड़ी चर्बी घटेगी.. वर्जिश तो करते हो नहीं.. फिर ऐसे हीं वज़न घट जाए तो क्या बुरा है.. कम से कम कोई तुम्हें देखने तो लगेगी... और ताऊ के गुम होने से ये भी फ़ायदा हुआ कि "के" से एक नई कहानी सुनने को मिली।
ताऊ: कौन सी कहानी.... साला हमारे ऊपर कहानी भी बन गई.. हमको किडनैप-विडनैप तो नहीं करवा दिए ना?
के: ना.. तुमको कोई किडनैप कर सकता है... ये लोग मज़ाक कर रहा है.. कोई कहानी नहीं है।
के (पीए से, धीरे-धीरे): इसको काहे कहानी याद दिला रहे हो. फिर ये हम लोगों का कान चो* देगा.. अब ये आ गया है ना.. चला जाए।
पीए(जोर से): तो चलो.. हम कोई तुम्हारे चप्पल में फेविकोल लगाए हैं
रजनी: हाँ चलो..चलो
वीडी: रजनी.. तुमलोग गाड़ी का पता करो..तब तक.. हम आते हैं
मणि: अब एक नई मुसीबत
ताऊ: अरे ये किधर जा रहा है.. दारू की दुकान पर... अरे.. वीडी... दारू लेने जा रहा है क्या?
वीडी: नहीं
ताऊ: तो? पोस्टर देखने जा रहा है?..... साला कितना बड़ा ठर्की है...
वीडी: नहीं साले....... इंडिया-श्रीलंका का मैच चल रहा है... तुमलोग को ट्रेन में हीं न बोले थे.. उसी का स्कोर देखने जा रहे हैं
ताऊ: चलो हम भी एक बार देख लेते हैं. वहीं दारू भी ले लेंगे.. आ जाओ मणि
पीए: दारू.. काहे?.... कहाँ पीओगे..
ताऊ: मुँह में पीएँगे.... अच्छा तुम पूछ रहे हो कि किस जगह पे पीएँगे.. तो ऊपर कहीं तो जगह मिलेगा.. वहीं पर पी लेंगे
पीए: साले.. ऊपर में पी के आउट आफ़ कन्ट्रोल हुए तो सीधे नीचे हीं आओगे
ताऊ: अच्छा है ना.. वैसे भी ट्रेकिंग के बाद हमें नीचे हीं तो आना है.. हम सीधे "जी" के एक्सेलरेशन से नीचे आएँगे.
पीए: गांजा?
ताऊ: साले.. हम अपनी बात कर रहे हैं, तुम्हारी नहीं.. गंजेरी कहीं के.. फिजिक्स में नहीं पढे? "जी" माने ग्रेविटेशनल फ़ोर्स
पीए: हाँ साले... फिर ऐसी "जी" लगेगी ना.. कि जीना भूल जाओगे... और इस जी माने "ऐस" यानि कि..
ताऊ: तो तुम मत पीना.. हम तुम्हारे मुँह में थोड़े हीं ठूँसने जा रहे हैं.. अब तो भाई "सुरा" का बंदोबस्त हो गया... सुंदरी भी मिल जाती तो रात कट जाती
रजनी: ताऊ साले.... हम लोग रात भर ट्रेकिंग करने वाले हैं.. सोने वाले नहीं..
बीस्ट: रात भर चलना है? हम तो सोचा कि १-२ बजे तक पहुँच जाएगा ऊपर... फिर आराम से सोएगा..
पीए: बीस्ट.. तेरी अकेले सोने की आदत खत्म नहीं हुई अभी तक? तू ऊपर कैसे सो लेगा... ये तो भाभी जी के साथ ज्यादती होगी.. तू प्राय: ऐसा करता है क्या?
बीस्ट: पीए.. तुम्हारा खुजली कभी खत्म नहीं होता क्या.. खुजाता रहता है.. खुजाता रहता है
ताऊ: खुजली?
बीस्ट: हाँ इसके "जी" में खुजली होता है.. तभी तो हर बार बीच में टपक जाता है
मणि: हा हा... बीस्ट जब भी बोलता है.. सौलिड बोलता है
बीस्ट: रजनी साले... रात भर चलना है क्या?
रजनी: हमको क्या पता.. हो सकता है चलना पड़े..
ताऊ: तब साले... हम क्या चलते-चलते दारू पीएँगे.. हम तो नहीं जा रहे.. वहीं आस-पास कोई गाँव होगा ना, वहीं रूक जाएँगे, रात भर हम और मणि दारू पीएँगे और सुबह में मूड फ्रेश करने के बाद तुम सबके साथ पुणे लौट चलेंगे
पीए: नौटंकी मत करो.. सब लोग चलेंगे... साले.. दारू पीने के लिए यहाँ तक आए थे क्या? जाओ तुम दारू ले लो. मौका मिलेगा तो पी लेना
ताऊ: ये हुई ना दिल जीतने वाली बात.... वीडी विल भी सो प्राउड आफ़ यू
मणि: ये साला हो क्या रहा है.. ताऊ विल भी सो प्राउड आफ़ वीडी... वीडी विल भी सो प्राउड आफ़ पीए.. ये थ्री-सम चल रहा है क्या?
ताऊ: हाँ.. हाहाहा... कोई दिक्कत?
मणि: छी

वीडी(दारू की दुकान से): आओगे सालों.. मस्त मैच चल रहा है. धोनी और युवी तो पेले हुए हैं..
रजनी: अरे.. चलो.. चलो...हम भी थोड़ा देख लें
ताऊ: हाँ चलो.. हमको भी तो अपना जुगाड़ करना है
मणि: सालों... अगर मैच हीं देखने लगे तो "अंबीवाली" जाने के लिए गाड़ी कौन ढूँढेगा...
के: ऐंबीवैली?
पीए: ये क्या नाटक है... हम जाने वाले थे "कोठलीगढ" और जा रहे हैं "एंबीवैली"
रजनी: नहीं बे... एंबीवैली नहीं... अंबीवाली.. ये दूसरी जगह है. जहाँ से हमें ट्रेकिंग शुरू करनी है.. कोठलीगढ के लिए
ताऊ: स्साला... इन लोगों को कोई नया नाम नहीं मिलता क्या... हर दूसरे गाँव का नाम "अंबीवाली" हीं रख लेते हैं..
वीडी (पास आकर): तुम लोगों को इनविटेशन कार्ड भेजेंगे तब चलोगे क्या मैच देखने?
मणि: स्साला..... तुम यहाँ मैच देखने आया है?
वीडी: हाँ... हाहाहा
मणि: तुम लोगों से मुँह लगाना और गोबर में मुँह डालना बराबर हीं है
पीए: अच्छा..... एक्सपीरियंस से बोल रहे हो.... तो फिर ये बताओ कि गोबर में कितने तरह के प्रोटीन और विटामिन होते हैं?
मणि: ये क्या मज़ाक है..
पीए: तुम हीं तो बोले कि गोबर में मुँह डाले हो..... यानि कि गोबर में प्रोटीन नहीं होता यानि कि वो फ़ास्ट फूड होता है... थैंक्स फ़ार द इनफ़ोर्मेशन
मणि: हे भगवान.. कौन-से मुहूर्त में हमको पुणे भेजे थे। अच्छा चलो एक बार गलती किए पुणे भेजकर तो फिर कौन-सा मुहूर्त में हमको इन नालायकों से मिलवाए...
ताऊ: भगवान को भी तीन गलती माफ़ है क्या? तब तो वो एक और गलती कर सकता है..... क्यों बीस्ट?
बीस्ट: साला.. फिर से हमारा नाम लिया..... तुम्हारा अब टोटल पौने तीन गलती हो गया है...
ताऊ: हमको कन्फ़्य़ूजियाओ मत.... तुम तीन गलती माफ़ करता है कि दो गलती..... तीन करता है ना.... तब तो हम १ गलती और कर सकते हैं.... है ना?
बीस्ट: और अब हो गया.... टोटल पौने चार गलती... अब बच के रहना
वीडी: गुड है....
ताऊ: साले हमसे तुम्हारी क्या दुश्मनी है.. भाभी के बारे में बोलता है वीडी और गलती हमारी बढ जाती है.. रेसिस्ट साले....
पीए: रेसिस्ट?
वीडी: हाँ मोटा लोग एक रेस में आता है और पतला लोग दूसरे रेस में.... तो ये रेसिस्ट हुआ ना.....
मणि: हाहाहा..... ताऊ मखा-मखाके मचा देता है.. वेलडन ताऊ
बीस्ट: तो मणि.... तुमको अंबीवाली जाने का या उसके आगे का रास्ता पता है? रजनी.... तुमको पता है?
मणि और रजनी(एक साथ): नहीं
ताऊ: जीयो मेरे शेरों..... तुम लोगों को सर्कस से छुड़ाकर लाया कौन?
पीए: मेनका गाँधी
ताऊ: और तुमको?
वीडी: वही.... हाहाहा
रजनी: कोई बात नहीं..... हम अंबीवाली में कोई गाईड ले लेंगे।
मणि: साउंड्स गुड... साउंड़्स लाईक ए प्लान..
के: क्या फ़ार्ट है!!

आगे क्या हुआ..यह जानने के लिए पार्ट 5 का इंतज़ार करें।

-विश्व दीपक
बांटें

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

ताऊयहाँपुर... रेलगाड़ी.. जनरल और स्लीपर (पार्ट-3)

पार्ट-2 के लिए यहाँ जाएँ।

Disclaimer: इस कहानी के पात्र वास्तविक हैं....लेकिन सारी घटनाएँ और संवाद काल्पनिक हैं। हाँ इतना जरूर है कि संवाद लिखते समय मैने पात्र की भाषा और शारीरिक-भाषा दोनों का पूरा ध्यान रखा है। जैसे कि ताऊ का अंदाज वैसा हीं है..जैसा इस कहानी में मालूम पड़ता है। (All the characters mentioned in this story are REAL but incidents and dialogues are fictitious. Even then I have followed the body language and LANGUAGE of all the characters how they look and how they speak in real life. For example, Tau behaves the same way as I have portrayed him in this story.)

तो भाईयों और भाभियों (हमारी खुशकिस्मती से अगर एक भी इधर पधारी हों तो) सिचुएशन बड़ा हीं रोमां..रोमांटिक नहीं रोमांचक हो चला है, रोमांटिक होने का तो कोई स्कोप हीं नहीं है क्योंकि सात मर्द रेलगाड़ी की भीड़-भाड़ में एक-दूसरे पर गालियों की बौछार कर रहे हैं और इन खुल्ले सांडों को अभी ट्रेकिंग के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा। हाँ, अगर ये लोग किसी और जगह, किसी और मौके पर होते तब तो भाई सांडपना की उम्मीद की जा सकती थी, लेकिन अभी कोई चांस नहीं.. अह्ह्ह्ह क्या सोचने लगे आप? भाई साहब ये लोग ऐसे-वैसे नहीं है, मतलब कि 377 हट गया तो क्या हुआ.. भगवान के साथ ईमानदारी भी कोई चीज होती है..आखिरकार ऊपरवाले ने मर्द और औरत नाम के दो प्राणी कुछ सोचकर हीं बनाए होंगे ना? जब उसने भेद रखा तो हम कोई भेद क्यों न रखें..तो ये सारे लोग भले हीं मन हीं मन किसी अप्सरा के ख्वाब में गुम हों, लेकिन हकीकत में ये सारे रेलगाड़ी में यहाँ-वहाँ, इधर-उधर, न जाने किधर-किधर गुमनामी की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। इन्हीं गुमनामों में से एक हैं रजनी "माइंड इट"। ये कभी भी यह माइंड नहीं करते कि उनके माइंड को भाव नहीं दिया जाता। इसलिए तो खूब सारा दिमाग (सौ फीसदी से भी ज्यादा युटिलाईजेशन..) लगाकर वो स्लीपर में चढ गए और अब मरे जा रहे हैं कि स्लीपर से जनरल में डिग्रेड/डिपोट होवें तो कैसे। अगले हैं मणि "द जीम-गोवर" (इस नाम के पीछे की कहानी जल्द हीं खुलेगी..इंतज़ार करिए, ऐतबार रखिए)जो हर बार कुछ अच्छा और अलग करने की कोशिश करते हैं, लेकिन इनका हश्र भी वही होता है, जैसा जिमी शेरगिल का होता है, हर फ्लाप फिल्म के बाद। ये महाशय चले तो थे स्लीपर से जनरल की ओर, दूरी कुछ ज्यादा नहीं थी, बस बार्डर पार करना था, लेकिन इन्हें बार्डर पर बने बंकरों में शरण लेनी पड़ी यानि की ट्वायलेट में। सो सैड ना? क्या कीजिएगा.. दिमाग-दिमाग की बात है। इन दोनों का सबसे पहले ज़िक्र इसलिए किया है क्योंकि कहानी इन्हीं पर रूकी हुई है। और इस कहानी को जो धक्का देकर आगे ले जाने वाले हैं, उस किरदार, उस कैरेक्टर (जो सच में एक कैरेक्टर है) का नाम है ताऊ "द डिशिजन-मेकर" (अब आप सोच रहे होंगे, कि ये कैसा नाम है...सब्र कीजिए, जल्द हीं पर्दाफाश होगा)। तो मंझधार में फंसे रजनी और मणि को तारने(आईटम को तारने वाला तारना नहीं, तारण करने वाला तारना) के लिए निकल पड़े हैं हमारे ताऊ.. आप खुद देखिए आगे क्या होता है।

रेलगाड़ी के जनरल डब्बे में:

ताऊ: हम आ रहे हैं उन दोनों नौटंकियों को लेकर। तुम लोग यहीं रहना..तुम लोग भी शिटपंथी मत करने लगना।
के: क्या फार्ट है!!
वीडी: हम्म..फिर से.. चुप हो जा के, ताऊ शिटपंथी से मना किया है।
बीस्ट: तो ये शिटपंथी थोड़े हीं कर रहा है, ये तो फार्टपंथी कर रहा है। ये उतना भी डाऊन टू अर्थ नहीं है।
पीए: हम समझे नहीं..क्या बक** है।
बीस्ट: मतलब कि ये उतना भी गिरा हुआ इंसान नहीं है।
पीए: बीस्ट साल्ले..पीजे की दुकान खोल रखी है क्या?
के: क्या फार्ट है!!
वीडी: छोड़, तेरा कुछ नहीं हो सकता। बीस्ट तेरा भी और के तेरा भी....के तेरा तो कुछ भी नहीं हो सकता...बेवकूफ़ी के बादशाह हो तुम....बेवकूफ़ साल्ले।
पीए: हाहाहाहा
वीडी: और तुम भी....इटियट्स...कहाँ फँस गया हूँ मैं।
पीए: मतलब कि हम थ्री इटियट्स हैं
बीस्ट: और वीडी चतुर द साइलेंशर..
के: अब तो फार्ट है हीं...कहीं न कहीं..सब लोग अपना-अपना नाक बंद करो।
पीए: वीडी.. अब तो तुमको भी जाना चाहिए ट्वायलेट...जाओ-जाओ ताऊ के पीछे जाओ.... और देखो मणि जैसे हीं निकले, तुम घुस जाना। वो तो नकली में घुसा है, तुमको असली में जरूरत है।
बीस्ट: हाहाहाहा
वीडी: घुस जाओ......और घुस जाओ...स्सालों...काम के न काज के, दुश्मन अनाज के। टेंशन पर टेंशन दिए जा रहे हो.. बोलो तो खोल के खड़ा हो जाऊँ, जितनी मारनी है मार लेना।
बीस्ट: छी.. क्या बोलता रहता है!
के: क्या बोलता रहता है?
बीस्ट: क्या?
के: वही तो क्या?
वीडी: फारसी बोल रहा हूँ..तुम लोगों को समझ नहीं आ रहा क्या? काहे दिमाग का दही किए हुए हो तुम सब। शांत बैठने का क्या लोगे?
बीस्ट: हम लेता नहीं देता है...
के: स्साला बीस्ट..गंदी बात करता है...
पीए: हाँ भाई, एक्सपिरियंस्ड आदमी है..तो बोलेगा हीं
बीस्ट: पीए साले....हम फंडा की बात कर रहा था
पीए: तो हम भी तो वही समझे थे..तुमको क्या लगा? दिमाग में कीड़ा भरा है तो हम क्या कर सकते हैं।
वीडी: लोग सही कहते हैं कि बेवकूफ़ दोस्त से समझदार दुश्मन ज्यादा अच्छा होता है..
के: अच्छा...वहीं मै सोच रहा था कि फेसबुक से मेरे फ्रेंड-लिस्ट से लोग गायब क्यों हो रहे हैं?
बीस्ट: अब ये क्या फंडा है...
के: अब मैं तो हूँ समझदार....होशियार.....तो लोग दुश्मन बनाएँगे ना....मतलब कि दोस्ती खत्म
पीए: स्साले तुम होशियार नहीं......सियार हो.... रात को जो हुआँ-हुआँ करते हैं ना....वो
बीस्ट: हम्म
पीए: और बीस्ट रंगा सियार.. बडी बना के खुद को शेर समझ रहा है.. पर है तो सियार हीं.. हुआँ हुआँ
के: और पीए तुम....तुम तो ढेंचू ढेंचू करने वाले गदहे हो.......ढेंचू ढेंचू.. बेंचो**
पीए: के गाली दिया....अच्छा लगा..मोगैंबो खुश हुआ
बीस्ट: अच्छा लगा तो टीवी से निकाल और मोबाईल में डाल
के: मतलब
बीस्ट: कुछ नहीं...पीजे था
के: बीस्ट साले...... पीए, तू बता..और दूँ गाली?
पीए: हाँ दे
के: छोड़...तेरे को गाली देके क्या फायदा.. गाली की भी एक औकात होती है और तेरी तो है नहीं।
पीए: ओके.. लेकिन तुम्हारी तो औकात है..तो तुमको हम गाली देते हैं। पर ये बता, तू मारेगा तो नहीं ना..
के: मैं..मारूँगा?
पीए: अरे हाँ..तू तो मार खाता है..मारता नहीं..औकात वाला है तू..औकात की मार खाता है
के: मतलब
पीए: स्क्वैश खेलता है और नाक तुड़वा लेता है...ये कम है क्या..औकात की मार...वैसे रामपुरिया (इसका जिक्र पहले पार्ट में आया था) की लिट्टी चुरा ली थी क्या तूने या फिर रामपुरिया के सामने मुदित (रामपुरिया का एक्स-फ्लैटमेट) की बड़ाई कर दी थी..क्या किया था तूने कि उसने आव देखा न ताव..और तेरे नाक का भाव बिगाड़ दिया।
के: कुछ नहीं..बस उससे स्क्वैश सीखने गया था..
पीए: स्साले..जिसको जो आए, उससे वही सीखना चाहिए ना.. बंदर के हाथ में रेजर दोगे तो वो तुम्हारी शेविंग करेगा कि थोपड़े का नक्शा हीं बिगाड़ देगा।
बीस्ट: बिगाड़ तो दिया.. ये कभी मल्लिका शेरावत हुआ करता था, अब राखी सावंत का ज़ेरोक्स बन गया है। ज़ीज़स.. गणपति बप्पा.. एलिस के पप्पा... और तेरे नाक पे रामपुरिया का ठप्पा
के: क्या फार्ट है..
वीडी: स्सालों..मछली बाज़ार बनाके रखे हुए हो..जब देखो तो बकर-बकर..
पीए: सौ चूहे खा के बिल्ली चली हज़ को.. वीडी साले.. तुम तो मत हीं बोलो.. खुद हल्ला करते हो। आफिस में कान फाड़के रखे रहते हो। एक उधर पीएच(आफिस की हिडिंबा) है, जिसका पीएच हमेशा हीं सात से ऊपर रहता है और एक तुम हो जो साला न जाने किसको सुनाने को..हाँ याद आया अपनी पंजाबन को सुनाने को दिन भर कुछ भी अकड़म-बकड़म बकते रहते हो। और वो घास भी नहीं डालती
वीडी: तो हम घोड़ा हैं कि घास डालेगी..
के: तुम क्या हो...अरे ये वीडी क्या बोलता है हमेशा
पीए: बुरबक
के: हाँ वही..तुम बुरबक हो
बीस्ट: पीए सही बोल रहा है
वीडी: बीस्ट साले..तुम कैसे सुन लेते हो..तुम तो अपनी महबूबा टीबी के पास बैठते हो..टीबी समझे ना, जिसमें दिन-भर अलग-अलग चैनल आता रहता है.. एकदम झकास चैनल.. पता है पीए तो पहले हीं दिन उसमें एफ़ टीवी देखने बैठ गया था.. पता चला कि वहाँ तो सास-बहू के सिरियल्स के अलावा कुछ नहीं आता.. हाहा.. जबरदस्त कटा पीए का।
के: तो इसमें नया क्या है?
पीए: बात से मत भटको।
वीडी: तुम तो दिमाग से हीं भटके हुए हो.. तो हम क्या बात से भी न भटकें।
बीस्ट: चलो यू-टर्न लो..
पीए: हाँ तो.. वीडी साले...ये बताओ कि ट्रेन में बकर नहीं करेंगे तो क्या गाँधी जी के बंदर बनके बैठे रहेंगे.. अलग बात है कि तुम तीन अभी बंदर हीं लग रहे हो.. फिर भी हमारी कुछ इमेज तो है ना
वीडी: हाँ इमेज तो है
बीस्ट: रोडसाईड रोमियो का... जो फोन पर भी लाईन मारता है.. आवाज़ सुनके हीं जिसका इमोशन खड़ा हो जाता है।
के: इमोशन्स हीं ना
बीस्ट: स्साला... हम सब खोलके बोलेगा क्या... बचपन में फिल इन द ब्लैक्स नहीं पढा था।
पीए: वो तो पढा हीं होगा... ब्लैंक्स भरने में मज़ा तो आता हीं है.. है ना?
के: पता नहीं... बीस्ट से पूछो.. मैं तो भाई अब तक अपना हाथ जगन्नाथ पर हीं ज़िंदा हूँ।
वीडी: ये हो क्या रहा है? मौका मिलते हीं चिकेन-मटन चबाना शुरू कर देते हो। स्साला बीस्ट... तू तो वेज है, फिर ये नान-वेज क्यों?
बीस्ट: 21 से ज्यादा उम्र का है हम.. कुछ भी बोल सकता है.. मारवाड़ी लोगों को नान-वेज खाना मना है, बोलना नहीं.. और बोलेगा नहीं तो फिर घर में अगला मारवाड़ी आएगा कैसे? हिसाब-किताब रखना पड़ता है भाई
वीडी: प्वाइंट तो है
के: बीस्ट बोला है.. सब को चुप करा दिया
पीए: हम्म्मम... हम तुम्हारे साथ हैं बीस्ट
वीडी: मारवाड़ी-मारवाड़ी.. भाई-भाई.. हो गया ये भरत-मिलाप?
पीए: हाँ बस सीता मैया की कमी है.. राम भैया चाहते तो अभी सीता मैया भी यहीं होती।
वीडी: और स्साले तुम मैया-मैया कहके.. बैंया पकड़ लेते और सैंया बन जाते.. गंदे इंसान
पीए: हम बोले कुछ.. स्साले खुद हीं सोचते हो... रावण कहीं के.. चेहरे से भी रावण हीं लगते हो। वही सोचें कि स्साला वो पंजाबन तुमको इग्नोर काहे मारती है..
के: ये पंजाबन कौन है बे?
वीडी: ये एक बड़ी हीं... छोटी कहानी है.. एकदम साईज़ जीरो जैसी.. सुनके क्या करोगे..
पीए: स्साला सुनाने को कुछ हो तो सुनाएगा..
वीडी: वही तो हम कह रहे हैं.. एकदम चोंधर हीं हो
के: अब ये क्या होता है?
वीडी: भखभेलर जानते हो?
के: नहीं
वीडी: तब तुम नहीं समझोगे।
बीस्ट: काहे नहीं समझेगा?
वीडी: एकदम बकलोल हीं हो तुम। बचपन में जैसे एलकेजी यूकेजी होता था ना तो एलकेजी में पढे बिना यूकेजी में जाते नहीं थे और एलकेजी से पहले नर्सरी। तो तुमलोग नर्सरी में हीं "ए बी सी डी" रटे होगे।
बीस्ट: हाँ, लेकिन भख...भखभेलर और नर्सरी.. हम समझा नहीं
वीडी: वही तो समझा रहे हैं। ये सब हाई-फंडा बात है। टाईम दो थोड़ा।
पीए: हाँ मास्टरजी बताईये.. ट्रेन का जितना टाईम बचा है, सब खा जाईये। ....
वीडी: तो तुमलोग छठी क्लास तक जो अंग्रेजी पढे, उससे थोड़ा-सा ज्यादा सातवीं में पढे होगे।
के: यप्प..
पीए: आ गए ये अंग्रेज के नाती.. गुरू जी, आप रूकिए मत, लगे रहिए.. अंग्रेजी का बलात्कार कर डालिए। बिहारी होने के नाते आपका तो बर्थ-राईट है ये, माने कि जन्मसिद्ध अधिकार।
वीडी: मतलब कि ले लिए बिहारी की.. पीए स्साले..बताएँ कि नहीं?
पीए: मत बताओ...बताके कोई एहसान कर रहे हो क्या.. बक** पे बक** किए जा रहे हो और ये दोनों बेवकूफ़..
के: अरे वीडी.. बोलोगे.. पीए की क्या सुनने लगते हो
बीस्ट: हाँ बोलो.. वो क्या चोंधर
वीडी: हाँ तो अब ये सोचो कि हम लोग छठी में "ए बी सी डी" पढे थे और सातवीं में सीधे "कोंडिबा डेयरिंग डाईव" पढने को मिल गया। तुम लोग भी सातवीं में यही पढे होगे, लेकिन इतना "डेयरिंग" तरीके से नहीं। हम लोग तो सीधा "लांग जम्प" मारे।
के: मैं अभी भी नहीं समझा।
वीडी: अरे भखचोंधर.. यही तो हम बता रहे हैं कि तुमलोगों को जिस लेवल तक पहुँचने में 10 साल लगे मतलब कि नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी जोड़कर वहाँ तो हमलोग 1 साल में हीं पहुँच गए। तुमलोग ज्यादा टाईम लिए इसलिए तुमलोगों का माईंड इतना ग्रो नहीं हुआ..
बीस्ट: और तुमलोगों का तो पैराशुट जैसा ग्रो कर गया..हाँ ना? स्साले..
वीडी: हाँ.. अब समझ गए तुम..इसलिए हमलोग बहुत-सा ऐसा शब्द बना लिए, जिसका तुमलोग मतलब हीं नहीं जानते हो. अब जैसे कि चोंधर, भखचोंधर, भखभेलर, बुरबक..
के: इतना घुमा-फिराकर यही समझा रहा था?
पीए: हम पहले हीं बोले थे.. लेकिन तुमलोगों को तो गुरू जी से ज्ञान लेना था। तो गुरू जी, आपने अभी तक इन शब्दों का मतलब नहीं बताया।
वीडी: मतलब अभी भी जानना चाहते हो। चलो बता देते हैं। जैसे कि तुम पीए हो, हर जगह ट्राई करते रहते हो या फिर के को ले लो जो स्साला पीने के बाद फिलोशफ़र बन जाता है, तुम दोनों ये सोचते होगे कि बांडगिरी में तुम लोग मास्टर हो, लेकिन तुम्हारा हर जगह कटता है और के को तो हर किसी से गाली मिलती है.. तो तुमलोग जो आँख रहते हुए भी देख नहीं पाते उसी को चोंधरपना कहते हैं और इस कारण तुम लोग क्या हुए?
बीस्ट: चोंधर..
के: बीस्ट स्साले..
बीस्ट: और बाकी सब का मतलब?
वीडी: बाकी सबका ऊपर-ऊपर से मतलब बेवकूफ़ होता है.. अब अगर इतिहास जानना हो तो बोलो.. हम उदाहरण-सहित बता देंगे।
पीए: नहीं छोड़ दो.. हम समझ गए।
वीडी: गुड है।
पीए: इतना तो बकर कर दिए..लेकिन ये समझे कि ये "लांग जंप" के कारण हीं अंग्रेजी में तुमलोग अक्ल से पैदल हो।
वीडी: नहीं जानते थे... बताने के लिए शुक्रिया। स्साले.. हमको क्या लालटेन समझा है.. जानते हैं तभी तो बकर कर रहे थे। वो कहते हैं ना "हँसो, मुस्कुराओ, खुश रहो, क्या पता कल हो न हो" (एकदम शाहरूख खान के स्टाईल में, 180
डिग्री के एंगल पर)
के: शाहरूख खान के करण-अर्जुन तो पहले से हीं थे.. तुम स्स्साले तीसरे आए हो क्या?
पीए: शाहरूख का हो न हो..ताऊ का तो ये तीसरा.. दूसरा... पहला.. नहीं एकलौता पार्टनर तो है हीं।
वीडी: तुम कैसे जाने स्स्साले?
बीस्ट: जाने? मतलब की है.. बस बताना नहीं चाह रहा है।
पीए: अरे बता भी दो.. एक साल तक तुम दोनों एक हीं रूम में रहे हो.. क्या-क्या हुआ कौन जानता है।
वीडी: स्साले एक रूम में हमारा बस सामान था.. सोते हम लोग अलग-अलग थे।
के: ओए-होए... अलग-अलग.. कितना उदास होके बोला ये। क्यों भाई,पीए से शर्माते थे क्या?
वीडी: हाँ स्स्साल्ले.. बाल की खाल निकाल लो.. मतलब कि कुछ भी.. चलो छोड़ो.. ये स्साला ताऊ अभी तक आया क्यों नहीं?
पीए: तुम न आए, तेरी याद आ गई। होता है.. इतनी हीं याद आ रही है तो फोन कर लो।
वीडी: स्साले... याद नहीं आ रही... हाँ अगर आ भी रही है तो क्या कर लोगे?
पीए: कुछ नहीं... ये तुम्हारा रिश्ता है, हम कौन होते हैं बोलने वाले
बीस्ट: हाहाहाहा
वीडी: बढिया है.. मुँह पर सेलोटेप चिपका लो.. आगे से भी मत बोलना.. रूको हम ताऊ को फोन करते हैं।
वीडी (ताऊ से): स्साले ताऊ
ताऊ: क्या हुआ? टिकट चेकर पकड़ लिया क्या तुम लोगों को? फोन काहे किया?
वीडी: तुम वहाँ मुजरा देखने गया था क्या? अटक काहे गया?
ताऊ: हाँ अभी शो खत्म हुआ है.. बंदी पकड़ ली थी.. कही की ऐसे नहीं जाने देंगे। कैसे-कैसे करके हाथ छुड़ाके निकले हैं .. नहीं तो हम किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहते।
वीडी: क्या बक रहे हो?
ताऊ: स्साले तो तुम हीं न शुरू किए... हम आ रहे हैं अभी.. पाँच मिनट में
वीडी: रजनी और मणि मिल गए ना?
ताऊ: हाँ वो दोनों मखाऊ भी हैं साथ में... फोन रखो, हम पहुँचते हैं।

उसी दौरान स्लीपर डब्बे में (ताऊ से फोन पर बातचीत होने से पहले):

ताऊ (रजनी से, फोन पर): स्साले, तुम हो कहाँ?
रजनी: तुम कहाँ पहुँचे?
ताऊ: हम अभी स्ट्रीप क्लब में पहुँच गए हैं। स्साले.. कहाँ पहुँचेंगे.. स्लीपर में घुसे थे तो उसी में न पहुँचेंगे।
रजनी: अरे तो स्लीपर में कहाँ?
ताऊ: तुम बताओ कहाँ हो.. हम ढूँढ लेगें। तुम तो फट्टु हो साले.. जानकर क्या करोगे.. तुम बस अपना बता दो कहाँ हो।
रजनी: हम स्लीपर में बीच में हैं?
ताऊ: अच्छा.. सही है बेटा.. हम लोग ट्रेन मे धक्कम-धुक्की खा रहे हैं और तुम बीच भी पहुँच गए। वैस साले हम जंगल जा रहे थे ना.. तो ये बीच कहाँ से आ गया?
रजनी: पीजे मत मारो..
ताऊ: स्साले तुम्हारे कारण मच्छर मारने के दिन आ गए हैं.. अब पीजे मारने पर भी रोक लगा दो
रजनी: तुम आ रहे हो कि नहीं?
ताऊ: नहीं.. हम स्लीपर में भांगड़ा करने आए हैं.. अरे आ रहे हैं। इतनी भीड़ है भाई... स्साला डेली इतना आदमी यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ जाता है। एक जगह रहे तो सबका कितना कल्याण हो जाएगा... है ना?
रजनी: कल्याण सिंह के मौसेरे भाई... अभी फंडे मत दो
ताऊ: तुम अपना सीट नंबर बताओ.. कहाँ पर लुढके पड़े हो?
रजनी: खड़ा हैं भाई... हाँ चौथे कम्पार्टमेंट में हैं.. सीट नंबर 31-32 के पास।
ताऊ: ओके... आते हैं.. वहीं पर तशरीफ़ टिकाए रखना.. इधर-उधर भागना मत..
ताऊ (रजनी के पास जाकर): फाईनली मिल गए तुम... स्साले एक घंटे पहले-से तुमको ढूँढ रहे हैं.. किधर भी चढ जाते हो। चढने से पहले सोचना चाहिए ना.. कभी बीमारी के चपेट में पड़ोगे तो जानोगे।
रजनी: अब स्साला ये बीमारी कहाँ से आ गई?
ताऊ: आ गई बस.. हम बोल रहे हैं तो हम कुछ भी ले आएँ.. हमारी मर्ज़ी
रजनी: ओके.. तुम्हारी मर्जी.. तो अब क्या करना है?
ताऊ: करना क्या है.. मणि को कालापानी से बाहर निकालने चलते हैं.. वो स्साला किस ट्वाईलेट में घुसा हुआ है?
रजनी: उधर हीं.. जिधर से आए हो तुम
ताऊ: उधर दो है... दोनों में खटखटाएँगे क्या? स्साला कोई बहन जी निकलीं तो फिर..
रजनी: तो दूसरे में मणि होगा... सिंपल.. कौमन सेंस लगाओ।
ताऊ: कौमन सेंस इतना कौमन होता तो तुम अभी तक इतना स्पेशल थोड़े हीं होते... तारे ज़मीन पर के स्पेशल चाइल्ड सेंसलेस बातें मत करो। सही कहा गया है "दिखावे पे मत जाओ, अपनी अक्ल लगाओ"। स्साला देख के तो लगता है कि
बुद्धि का खान है, लेकिन कौन जाने कि मुखौटे के पीछे छुपा हुआ यह प्राणी कोई बुद्धू खान है।
रजनी: बोल लिए? अब चलें?
ताऊ: हाँ चलो.. हम तुमको बाँधकर रखे हुए हैं क्या? चलना क्या है दौड़ो.. जगह मिल जाए तो।
रजनी: तुम आगे चलो.. टिकट तुम्हारे पास है। टीसी उधर हीं खड़ा था।
ताऊ: किधर था.. हमको तो नहीं दिखा। साला हमको देखके रूप बदल लिया क्या..
रजनी: इधर हीं था.. गेट और ट्वाइलेट के बीच में
ताऊ: तो गया कहाँ? चलती ट्रेन से कूद गया? कि वो भी मणि के पीछे-पीछे अंदर घुसा हुआ है? अब तो मणि गया? अब तो वो भी गई? क्या होगा उसका? क्या होगा निम्मो का?
रजनी: निम्मो?
ताऊ: नाम नहीं ले सकते ना.. नहीं तो वो साला कहानी में घुसके मारेगा.. नहीं तो गुस्सा हो जाएगा.. इसलिए सीरियल का नाम ले लिए हैं। अब निप्पो बैट्री कहने से अच्छा है ना निम्मो कहना?
रजनी: तो कुछ और हीं कह लेते... जैसे कि पूजा, अर्चना, आ..
ताऊ: अरे..नहीं नहीं तौबा-तौबा.. ये सब तो आफिस में हीं है.. "रेपो" भी कोई चीज होता है।
रजनी: रेपो और तुम्हारा... तुम्हारे रेपो का तो रेप हो चुका है.. नहीं जानते हो?
ताऊ: जानते हैं.. छोड़ो.. अच्छा ये बताओ कि तुम कैसे जाने कि वो टीसी हीं था।
रजनी: इसमें जानना क्या है.. काला कोट पहना था और किसी से कुछ बकझक कर रहा था।
ताऊ: तुम किसको टीसी समझ गया था बे... हर काला कोट वाला टीसी नहीं होता... कुछ वकील भी होता है। हाहाहा
रजनी: वो टीसी हीं था।
ताऊ: पक्का.. फ्रीज़ किया जाए?
रजनी: स्साले.. जवाब की कुल्फी बनाओगे क्या?
ताऊ: तो तुम्हारे टीसी की कुल्फी बनाएँ? यहाँ तो कोई काला कोट वाला नही हैं..कहीं कोई भूत तो नहीं था ना।
रजनी: दिन में भूत
ताऊ: हाँ वो डे-शिफ्ट में काम करता होगा। ओवरटाईम.. उसकी भी तो बीवी होगी.. पगार के लिए झाड़ू से पीटती होगी।
रजनी: अच्छा.. अब समझे.. तभी.. जिसके बडी मे घोस्ट इंटर कर जाता है, उसकी झाड़ू से पिटाई की जाती है।
ताऊ: हाँ स्साले.. पीजे की भी टाँग तोड़ दो.. मज़ाक नाम की भी कोई चीज होती है.. सुने हो कि नहीं?
रजनी: चलो तो अगर टीसी नहीं है तो मणि को निकालते हैं बाहर।
ताऊ: ओके... तुम जाके ट्वाइलेट का दरवाजा खटखटाओ... देखो झांकना मत अंदर.. बैड मैनर्स
रजनी: हम काहे खटखटाएँ.. तुम जाओ.. तुम कुछ नहीं करोगे
ताऊ: स्साला.. हमको क्या पड़ी है.. टिकट तो है हीं हमारे पास
रजनी: तो मुझे कौन सा पागल कुत्ता काटा है.. तुम्हारे साथ हूँ तो अपना भी काम हो गया। नहीं खटखटाओगे तो छोड़ो।
ताऊ: स्साले.. यही दोस्ती यही प्यार, बीच में आ गई ट्वाइलेट की दीवार.. मतलब कि ट्वाइलेट का दरवाजा
रजनी: और तुम्हारा तो दोस्त तो वो है नहीं?
ताऊ: हमारा तो हैं हीं.. हम तो उसको निकाल हीं लेंगे.. लेकिन पहले तुम ट्राई करो.. पहले छोटे-मोटे लोग कोशिश करते हैं बाद में "द ग्रेट खली" तो है हीं
रजनी: खली और तुम... खुद को आईने में देखे हो?
ताऊ: आईना मुझसे मेरी पहली-सी सूरत माँगे.. इसलिए नहीं देखता.. और वैसे भी आईना हमारे लिए बना है कि हम आईने के लिए? तुम इन सब में दिमाग मत खपाओ, अपना काम करो.. मणि को फ्री करो।
रजनी: चलो मैं हार मान गया.. तुम हीं अपनी कोई ताऊपंथी दिखाओ।
ताऊ: हमको पता था। तुम किसी काम के नहीं हो। अब ये देखो.. इसे कहते हैं दूरध्वनि यंत्र यानि कि मोबाईल। इसमें नंबर डाला, फोन किया..
ताऊ (मणि से, फोन पर): मणि
मणि: हाँ ताऊ
ताऊ: निकल आओ बाहर.. रास्ता क्लिअर है.. दुश्मन सेना के सिपाही भाग गए हैं.. अब तुम्हें अपनी पीठ दिखाने की कोई जरूरत नहीं है..
मणि: क्या बोल रहे हो?
ताऊ: स्साले.. बोल रहे हैं कि अपने बिल से बाहर निकलो.. चूहे कहीं के.. टीसी चला गया है
मणि: अच्छा, निकलता हूँ.. बस दो मिनट.. हाथ-मुँह धो लूँ।
ताऊ: कर क्या रहे थे स्साले तुम अंदर..
मणि: अंदर आके क्या करते हैं?
ताऊ: करते तो बहुत कुछ हैं.. तुम क्या कर रहे थे? अच्छा छोड़ो.. निकलो जल्दी
रजनी (ताऊ से): स्साला वो अंदर खाना भी ले गया है शायद
ताऊ: शायद या पक्का
रजनी: जाने से पहले मुझे चिट्ठी लिखकर गया था क्या? मुझे क्या मालूम
ताऊ: अच्छा, तुमको नहीं लिखा था? हमको तो लिखा था.. लिखा कि हम शिट करने जा रहे हैं.. तुम लोग अब "ओ शिट", "ओ शिट" करते रहो.. ओ शिट
रजनी: ओ शिट
मणि: गुड गोविंग.. वैसे तुमलोग शिट को याद क्यों कर रहे हो?
ताऊ: हमारा रिलेटिव है.. हर दो-चार घंटे में हम याद कर लेते हैं। ये क्यों कर रहा है, हमको पता नहीं।
रजनी(मणि की हाथ खाली देखकर): मणि साले... खाने का क्या किया? अंदर बैठे-बैठे दोनों काम एक साथ कर रहा था क्या.. इनकमिंग-आउटगोविंग एक साथ?
ताऊ: ओ शिट
मणि: खाना? वो मेरे पास थोड़े हीं हैं।
ताऊ: तो टिकट की तरह खाने की भी स्टोरी चलेगी क्या? स्साला मैं एंटी-क्लाईमेक्स देख-देखकर बोर हो गया।
रजनी: मणि बता दे जल्दी... एक नई कहानी सुनने और सोचनी की हिम्मत नही बची।
मणि: चलो ठीक है... ताऊ.. एक और एंटी-क्लाईमेक्स
ताऊ: बको
मणि: जहाँ पर रजनी था, वहीं पर ऊपर वाले सीट पे मैंने खाना रखा था। जल्दी-जल्दी में वहीं पर भूल गया।
रजनी: पहली बार भूलकर तूने अच्छा किया है.. नहीं तो..
ताऊ: खुद को भी स्साले वहीं भूल गए होते तो और भी अच्छा होता ना। भगवान करे कि तेरे को भूलने की बीमारी लग जाए और तू ऐसे हीं खाना भूल जाया करे।
रजनी: आमीन!!
मणि: स्सालों... दुआ दे रहे हो कि बद्दुआ
ताऊ: तुमको जो लगे वही मान लो.. वैसे भी तुम्हारे मानने न मानने से क्या होता है। होगा तो वही जो तुम्हारी गर्लफ्रेंड मानेगी। है ना?
मणि: हम्म्म
ताऊ (फोन पर, वीडी से): क्या हुआ? टिकट चेकर पकड़ लिया क्या तुम लोगों को? फोन काहे किया?
रजनी: क्या हुआ?
ताऊ: जल्दी चलो, भक्तजन मेरी राह देख रहे हैं। स्साला.. फेमस होना भी कितना टेंशन का काम होता है.. ये मैनेज करो, वो मैनेज करो.. अरे पहले खाना ले लो वहाँ से.. मिला? मिल गया ना... अरे तो आओ इधर.. खाने पर पीएचडी करने बैठ गए क्या वहाँ? स्साले मखाऊ लोग..

फिर से जनरल डब्बे में(सारे फंटूश एक साथ):

वीडी: अच्छा ये बताओ कि गाईड फिल्म के गाने "गाता रहे मेरा दिल" में वहीदा रहमान साड़ी क्यों नहीं बदलती?
ताऊ: क्योंकि उसके पास तौलिया नहीं था।
वीडी: तौलिया? साड़ी बदलने के लिए तौलिया क्यों चाहिए। मतलब कि कुछ भी.. मुँह खोले और भक से बोल दिए।
ताऊ: तो उसके पास दूसरी साड़ी नहीं थी तो कैसे बदलती।
रजनी: बात में तो दम है।
वीडी: पीजे है भाई.. गाने का नाम लिया है तो कोई तो लिंक होगा.. ये एक्स्ट्रा डेटा नहीं है।
ताऊ: ओके.. साउंड्स गुड
के: गाना किसको याद है? जिसको भी याद है गाओ..
वीडी: स्साला.. किसी को भी याद नहीं है.. लगता है कि हमको हीं गाना होगा। "ओ मेरे हमराही मेरी बाँह थामे चलना, बदले दुनिया सारी तुम ना बदलना"।
बीस्ट: समझ गया..
पीए: गुड पीजे
मणि(पीजे पर पीजे सुनकर थक चुकने के बाद): ये हो क्या रहा है। साला मेरा सर दर्द करने लगा।
ताऊ: अब यहाँ तेरी गर्लफ्रेंड तो है नहीं जो सर दबाएगी। हम गला दबा सकते हैं दबा दें।
मणि: और भी कुछ दर्द कर रहा है.. वो दबा दो
ताऊ: सौरी.. सर्विस देने समय कंडिशन भी अप्लाईड है.. एक्स्ट्रा सर्विस चाहिए तो कुछ और भी देना होगा.. और वो तेरे से नहीं लूँगा
मणि: ताऊ स्साले।
वीडी: हमको कन्फ़ूजन हो रहा है
ताऊ: अब तुमको क्या हो गया बे। क्या कन्फ़्यूजन है? कि तुम लड़का हो कि लड़की? लड़की का कन्फ़्य़ूजन है तो टेस्ट करने के लिए हम रेडी हैं नहीं तो "के" के पास जाओ।
के: के
वीडी: नहीं स्सालों.. हमको कन्फ़ूजन हो रहा है कि ट्रेन चली किधर थी और जा किधर रही है..
पीए: तुमको पहुँचने से मतलब है ना..जिधर भी जाए.. तुम उतर कर ट्रेन को ठेलने वाले थोड़े हीं हो।
वीडी: फिर भी यह जा किधर रही है?
बीस्ट: हम जिधर मुँह करके खड़ा है, ट्रेन उधर हीं जा रहा है।
के: वाह! क्या बोला है बीस्ट
ताऊ: मतलब कि तुम जिधर मुँह करके खड़ा हो जाता है, ट्रेन उधर हीं चलने लगती है।
बीस्ट: हम ये कब बोला?
पीए: अभी तो बोला।
वीडी: तो अगर बीस्ट घूम जाए तो ट्रेन उल्टी चलने लगेगी।
पीए: और बीस्ट अगर लेट जाए तो ट्रेन तो रूक हीं जाएगी।
ताऊ: क्यों ऊपर क्यों नहीं जाएगी। बीस्ट है भाई.. ट्रेन ऊपर चली जाएगी।
पीए: ऊपर कैसे जाएगी.. ट्रेन तो पटरी पर हीं चलेगी ना..
के: लेकिन बीस्ट है... कुछ भी हो सकता है।
मणि: शायद कर्जत आने वाला है।
ताऊ: मणि जब भी बोलता है, काम की हीं बात बोलता है.. बोल लो जब तक मौका है, यहाँ से लौटने के बाद तो फिर सुनते हीं रहना है.. इसकी भी यही कहानी है इंग्लिश-हिन्दी भाई-भाई... सौरी इंग्लिश-हिन्दी ननद-भौजाई। "मणि, कैन यू ऐरेंज ए फ्लैट फौर मी".. "यस वाई नौट", "बट..कैन वी लीव टूगेदर..मिन्स लीव-इन".."नो..नेवर".. और मैडम जी का तेवर..
मणि: क्या बोल रहे हो ताऊ..
ताऊ: नहीं कुछ नहीं.. तुम्हारा गुण-गान कर रहा हूँ।
मणि: समझ गया मैं..
रजनी: सब लोग अपना-अपना सामान उठा लो। लग जाओ लाईन में..

आधे घंटे तक उसी लाईन में खड़े रहने के बाद:

वीडी: स्साला.. कौन बोला था कि कर्जत आ गया।
पीए(बीस्ट से): बीस्ट, घूम जाओ ना... ट्रेन रूक जाएगी।
ताऊ: हाँ स्साले बीस्ट घूम जा.. सामान उठाए-उठाए हाथ में मसल्स आ गए।
वीडी: और मेरे सर पे.. स्साला बड़ा भारी बैग है।
के: वहाँ पर घर बसाने जा रहा है क्या..?
वीडी: बसा लेता अगर बीस्ट या मणि या तू हीं अपनी गर्लफ़्रेंड लेकर आया होता।
मणि: स्साले.. फिर से..
रजनी: बीस्ट... बात मान.. रूकवा दे ट्रेन
बीस्ट: स्साला... रूकवा देता.. लेकिन तुम लोग हमारा पावर नहीं जानता है, घूमा तो ट्रेन एक्सीडेंट हो जाएगा।
सब लोग एक साथ: ऊऊऊऊऊऊऊओ..... जे बात..

आगे क्या हुआ..यह जानने के लिए पार्ट 4 का इंतज़ार करें।

-विश्व दीपक
बांटें

रविवार, 27 दिसंबर 2009

ताऊयहाँपुर... रेलगाड़ी-रेलगाड़ी (पार्ट-2)

पार्ट-1 के लिए यहाँ जाएँ।

Disclaimer: इस कहानी के पात्र वास्तविक हैं....लेकिन सारी घटनाएँ और संवाद काल्पनिक हैं। हाँ इतना जरूर है कि संवाद लिखते समय मैने पात्र की भाषा और शारीरिक-भाषा दोनों का पूरा ध्यान रखा है। जैसे कि ताऊ का अंदाज वैसा हीं है..जैसा इस कहानी में मालूम पड़ता है। (All the characters mentioned in this story are REAL but incidents and dialogues are fictitious. Even then I have followed the body language and LANGUAGE of all the characters how they look and how they speak in real life. For example, Tau behaves the same way as I have portrayed him in this story.)

तो सिचुएशन यह है कि रजनी और मणि पुणे स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर झक मार रहे हैं....अरे नहीं केटरिंग कर रहे हैं...अरे नहीं नहीं ट्रेकिंग के लिए खाना खरीदने गए हैं और बाकी के पाँच लोग ट्रेन में एक-दूसरे का मुँह निहार रहे हैं..एक दूसरे का नहीं बस ताऊ का। क्यों? अब भी बताना होगा। ताऊ ने जो सारे के सारे टिकट मणि को दे दिए हैं। अब लोगों को कुछ सूझ नहीं रहा कि किया क्या जाए? कूद जाएँ ट्रेन से(नही..हड्डी पसली टूट जाएगी), ताऊ को फेंक दे ट्रेन से(ये अच्छा उपाय है, लेकिन फेंकने से मिलेगा क्या..ताऊ ठहरा आधी पसली का..आप सोच रहे होंगे कि पहले पार्ट में डेढ पसली लिखा था और अब वो आधी पसली हो गया...तो भाई हम यहाँ ताऊ की पसलियाँ गिनने के लिए जमा हुए हैं या फिर ताऊ की गलतियाँ...गलतियाँ ना..तो क्या फर्क पड़ता है- आधी पसली या डेढ पसली और वैसे भी ताऊ को जो देख ले वो पसलियाँ गिनना भूल जाए। स्स्स्साला...ये खाने को खाता है या फिर खाना इसको खा जाता है पता हीं नहीं चलता। तो इसे फेंककर भी क्या होगा...हड्डियाँ होंगीं तो टूटेंगी..तो यह आईडिया भी केंसिल), या फिर बैठे रहें टी०सी० (टिकट चेकर) के इंतज़ार में(और कोई उपाय है भी क्या?) आप खुद देख लीजिए कि आखिरकार ये क्या फैसला लेते हैं और आखिरकार इनके साथ क्या होता है।

छुक-छुक करती ट्रेन के अंदर धुक-धुक करते दिल:

के: साले...ट्रेन खुल गई...क्या फार्ट है....
बीस्ट: ट्रेन खुल गया? किधर से खुल गया..इंजन से या पटरी से? कन्फ्युज्ड बातें मत बोला करो। कहो कि ट्रेन चलने लगा.. समझा?
पीए: बीस्ट साले..पीजे मारता है....तू तो समझ गया ना...तो समझके क्या मिला तुमको? तंबूरा?
बीस्ट: हमको क्या बोलता है? ताऊ को बोल...बड़ा हीरो बन रहा था। हम जगह रखेगा...हम जा रहा है पहले। स्साला खुद आ गया और टिकट दे आया अपना बीवी को।
के: बीवी को...कि हसबेंड को...हाहाहा
बीस्ट: तेरा क्यों जल रहा है...तेरा बीवी है क्या वो... जब देखो मुँह खोल देता है..
के: सौरी
पीए: ताऊ..ताऊ..
वीडी: सुसाईड कर लिया क्या साले...बोलेगा कुछ?
ताऊ: स्स्साला हमहीं को बोलो सब। हम तुम लोगों का नौकर हैं? काहे बोलें हम कुछ। हमारी मर्जी...किसी को दें टिकट.. बीस्ट साले... खुद तो पहले आया नहीं.. और हमको 6 बजे के ट्रेन के लिए 4 बजे उठा दिया। क्या मस्ती से सो रहे थे.. फोन आया तो धरफराके उठे। उधर से बीस्ट हड़बड़ाके बोला कि ट्रेन आधा घंटा में है..जल्दी आओ। भाग के आए हम... और यहाँ आके देखते हैं कि...
वीडी: तुम अकेले आया था? हम भी तो आए थे।
ताऊ: स्साले तो तुम आके कौन-सा तीर मार लिए। मर-मरके टिकट के लाईन में तो हम लगे।
पीए: झूठ बोलेगा ताऊ। लाईन में हम लगे थे..टिकट हम कटाए थे।
के: के.. पीए तुम टिकट कटाया था? कैसे कटाया था टिकट..जैसे हमेशा कटाता है...अपना
बीस्ट: हाहाहाहा
वीडी: स्स्सालों...पीजे मारते रहो। और कोई काम-धाम तो है नहीं। सीरियस डिसकशन हो रहा है.. और इन जोकरों को मजाक सूझ रहा है। समझ रहे हो तुम लोग.....हम लोग डब्ल्यु० टी० जा रहे हैं।
के: विद टिकट?
ताऊ: दिमाग में गोबर भरा है? किधर है टिकट कि विद टिकट? विदाउट टिकट..
वीडी: सब बेवकूफ़ भरे हैं यहाँ
के: के
ताऊ: तो स्स्साले पीए...टिकट जब तुम कटाया तो टिकट हमारे पास आया कैसे? उसमें पंख लगा था क्या कि फुर्र फुर्र उड़ के आ गया? कुछ भी बक दो। ठीक है...हमको क्या.. लोग जब लेंगे न..तब बुझाएगा।
ताऊ(पीए को छोड़कर बाकी सबसे): लो भाई.. लो इसकी...तलाशी लो। करो..करो..इसका पौकेट चेक करो। इसी के पास है टिकट..
ताऊ(पीए से): और बनो हीरो। हम कटाए थे टिकट...अब निकालो... स्स्स्साले हीरो बनने की आदत नहीं गई। कटवा-कटवाके मन नहीं भरा? और मचाओ...जहाँ मचाने जाते हो वहीं कटता है तुम्हारा.. मचाओ यहाँ भी?
वीडी: मचादो यहाँ भी। हाहाहा
पीए: मतलब.
वीडी: छोड़ो...क्या करोगे......वैसे भी शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है।
के: नाम? ....ओके..के
पीए: वीडी स्स्साले.. शेक्सपियर के परपोते.. मौका मिला नहीं कि गजोधर स्टाईल में मुँह खोले और भक से बोल दिए।
अंग्रेजी में ए,बी,सी,डी के बाद सीधे शेक्स..शेक्सपियर हीं पढ लिए क्या? हम बता रहे हैं..तब हीं तुम्हारी अंग्रेजी इतनी खतरनाक है.. छोड़ो तुमसे अंग्रेजी पे बात करना और कलकत्ता पैदल जाना एकदम सेम टू सेम है।
ताऊ: कलकत्ता तो बीस्ट जाएगा.......तुम तो पुरूलिया जाओ। अच्छा..बाद में जाना.. पहले ये बताओ कि स्स्साला टिकट किधर रखे हो छुपाके
बीस्ट: साले तुमलोग टिकट छुपाके रखा है क्या?
के: क्या फ़ार्ट है..
वीडी: के.. तुम क्या फार्ट पे पी०एच०डी० किए हो? और कुछ बोलने नहीं आता।
के: क्या फार्ट है..
वीडी: हम्म्म्म.... होपलेस.. बेवकूफी की हद है
ताऊ: पीए बोलेगा कुछ..
पीए: नहीं है साले....टिकट मेरे पास नहीं है।
ताऊ: तो टिकट का तुम किए क्या?
बीस्ट: स्साले ताऊ.. जब तुम्हारे पास था नहीं तो काहे बोले कि हमारे पास है। और फिर मणि को कौन दिया? तुम कि पीए
वीडी: साला..लगता है कि हम पगला जाएँगे। अरे ताऊ, पीए...तुम दोनों सेटिंग करके आए हो क्या? नौटंकी मचा रखे हो।
ताऊ: पीए..रजनी को फोन करो फिर से...पूछो कि कहाँ है?
बीस्ट: क्यों?
ताऊ: टिकट मणि के पास हीं होगा
के: तो दिया कौन उसको टिकट
पीए(फोन पे): रजनी साले....कहाँ मरा रहा है...
बीस्ट: क्या बोला
पीए: कुछ बड़बड़ा रहा था..समझ नहीं आया।
ताऊ: स्साले.....तुम्हारी समझदानी में छेद है। सारा समझ चू गया है उसमें से.. समझ नहीं आता तो फोन लेकर चलते काहे हो? स्साला..इसीलिए तुमसे बंदी नहीं पटती...आएँ आएँ, हलो हलो करते रहोगे तो यही न होगा।
पीए: और जैसे कि तुमसे पट जाती है? खाली फंडा हीं दो।
ताऊ: अरे तुम क्या जानो। कभी आराम से बताएँगे। वैसे भी तुमको बताके क्या फायदा। आफिस की हर बंदी पर ट्राई कर चुके और स्कोर अभी भी ज़ीरो। एक्सेल पर सेशन देने से फ्रस्ट्रेशन खत्म नहीं होता.. बंदी बस मास्टर जी हीं समझती है और गुरू तो पिता के समान होता है। हाहाहा
पीए: साले ताऊ
बीस्ट: तुमलोग अपना गुरूपंथी खत्म करेगा। साला मौका मिला नहीं कि बंदी पे लेक्चर चालू कर देता है। जिसके पास बंदी है वो बोलता हीं नहीं..
के: बीस्ट अपनी बात कर रहा है।
वीडी: तू समझ गया। बहुत दिमाग है तेरे पास। कहाँ से चुराया है। हाहाहा
बीस्ट: तो क्या करना है?
ताऊ: के..तू फोन कर..मणि को।
के: के..साउंड्स गुड।
के(मणि से): कहाँ है तू? टिकट तेरे पास हीं है ना?
मणि (के से): नहीं...क्यों? टिकट तो...
के: साला सिग्नल चला गया।
वीडी: क्या बोला मणि?
के: टिकट उसके पास नहीं है। स्साले तुम लोग पी के आए हो क्या? टिकट लिया भी था कोई कि लालू की ट्रेन समझके आ गए तुम ताऊ...... गंध मचाए हुए हो।
ताऊ: अरे टिकट लिए तो थे...पीए लिया था....हम पैसा भी दिए थे...
पीए: और स्साले ताऊ....टिकट लेने के बाद हम पैसा के साथ तुमको टिकट भी दे दिए थे।
ताऊ: हम्म्म
बीस्ट: तो टिकट गया कहाँ?
वीडी: पीए, ताऊ.. तुम हीं दोनों में से किसी के पास होगा...याद करो।
ताऊ: याद आ गया।
बीस्ट: याद आया तो अगले साल बकेगा?
ताऊ: अभी बकते हैं..लोड काहे लेते हो।
बीस्ट: बकेगा कि उठाके फेंके तुमको बाहर। दिमाग का दही करके रखा हुआ है।
के: हाँ यार कब से पेशाब पिलाए जा रहा है। (एन०आई०टी० के० के प्रेसिडेंट को वहाँ का लिंगो, वहाँ की भाषा यूज करने का अधिकार है..इसलिए इस डायलोग को सेंसर नहीं किया जा सकता।)
पीए: टिकट ताऊ के पास हीं है। हम बता रहे हैं...हम जानते हैं
वीडी: ताऊउउउउउउ
ताऊ: क्या?
के: ताऊ तेरे पास है टिकट?
ताऊ: ह्म्म्म्म्म..... आई थिंक सो... देखना पड़ेगा...
बीस्ट: स्साले अंग्रेज की औलाद बताएगा
ताऊ: पहले ये बोल कि तू मारेगा तो नहीं..मारेगा तो नहीं बताऊँगा.. वैसे भी तो तू तीन गलती माफ़ करता है।
बीस्ट: तेरे हीं पास है...हम समझ गया....नौटंकी साला
ताऊ: हम्म्म... स्स्साला पीए हमको टिकट दिया और वही भूल गया... और बाकी तुम लोग तो महाराजा हो, टिकट कौन लिया..किसके पास है..मतलब हीं नहीं है..पिकनिक पे जा रहे हो तुम लोग स्स्साले
पीए: हम कहाँ भूले थे...हम तो बोले कि तुमको दिए हैं..अब तुम अपनी बीवी को ले आए बीच में तो हम क्या करते।
के: मणि की बात कर रहे हो?
वीडी: नहीं तुम्हारी कर रहा है...कभी कभी अक्ल भी लगा लिया करो.. अक्ल क्या घास चरने गई है तुम्हारी।
ताऊ: स्साले.. मणि की गर्लफ़्रेंड है...ऐसे हीं कुछ भी बोल देते हो..
पीए: तो स्साले......तुम्हीं न लाए उसको बीच में कि टिकट मणि को दिए हैं
ताऊ: और तुमलोग मान भी गए..
वीडी: तो हमलोगों को सपना आएगा.. हमको लगा कि तुम फिर से ताऊपंथी कर गए। पहले भी तो तुम ऐसा किए हो। टिकट लिए 20 का और स्टेशन गए 21 को। ट्रेन में घुसे तो असलियत मालूम पड़ी। फिर मुँह लटकाके निकले बाहर।
ताऊ: हर बार वही नहीं होता।
पीए: तुम्हारा क्या भरोसा।
ताऊ: लेकिन इस बार तो तुम लोग बेवकूफ बने। वीडी और पीए प्लेटफार्म से लेकर ट्रेन तक मेरे साथ था। फिर भी स्स्साला बेवकूफ बन गया दोनों। अंग्रेज 200 साल ऐसे हीं नहीं बेवकूफ़ बनाया था तुम लोगों को
बीस्ट: तुमलोगों को?
ताऊ: अरे भावनाओं को समझो...हमलोगों को... बोला कि कौआ कान ले गया है तो हमलोग कौआ को देखने लगे.. कान को देखते तो न अंग्रेज टेंशन देता और न तुमलोग टेंशन लेता
पीए: जय हो ताऊ बाबा की.....तो स्टडापा दिखा दिए।
ताऊ: तुम नहीं समझोगे.. अच्छा, आफिस में अगला बैच कब आ रहा है? सेशन तो तुम हीं लोगे..लग जाओ... मचा दो इस बार.....
बीस्ट: मचा दो.. हम्म्म्म
पीए: पिट जाओगे तुम लोग... हम बता रहे हैं।
बीस्ट: हम डर गया
ताऊ: बीस्ट इसको माफ कर दो..तीन गलती तो तुम ऐसे हीं माफ करता है।
वीडी: ताऊ..तेरा नंबर जल्दी आएगा। चुप हो जा।
ताउ: अच्छा..हाँ...
के: स्साला..यानि कि टिकट हम हीं लोगों के पास है
पीए: तुमको अभी समझ आया? ट्युबलाईट साले
के: अरे नहीं..वो तो मैं समझ गया। लेकिन मैं सोच रहा था कि जबरदस्त क्लाईमेक्स आएगा और हम लोग ताऊ को फेंक देंगे बाहर लेकिन ये तो एंटी-क्लाईमेक्स हो गया। टू बैड यार..
बीस्ट: स्साले इतना दिमाग तू "कैट" में लगाया होता तो कब का फोड़ देता। और टिकट यहीं है तो अच्छा है ना। हमलोग अब आराम से जाएगा।
के: हाँ यार.. समझदार है तू
वीडी: लेकिन वे दोनों अपने रसोईये कहाँ हैं..मतलब कि पार्सल-ब्व्याज..अरे मतलब कि रजनी और मणि..ताऊऊऊऊ
ताऊ: हम क्या उनको पौकेट में लेकर बैठे हैं। तुम भी यहीं है और हम भी यहीं है...ज्यादा चिंता हो रही है तो फोन करो उनको।
पीए: करें फोन?
ताऊ: तुम मत करो...बेकार में बिल उठेगा.. तुमको समझ तो कुछ आएगा नहीं
बीस्ट: तो स्साले ताऊ..तुम हीं करो फोन
ताऊ: ठीक है... फोन दो...के फोन लगाओ।
के: किधर लगाएँ...तुम्हारे कान में?
ताऊ: नहीं...अपने **** में लगा लो (ये शब्द सेंसर्ड हैं)। स्साले इधर फोन दो।
के: स्साले ताऊ..एक फोन तक नहीं रखता है।
ताऊ: फोन है.. लेकिन तुम्हारा फोन हमको अच्छा लगा...इसलिए इसी से बात करेंगे। किसी महापुरूष ने कहा है कि "दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम और फोन फोन पर लिखा है बतियाने वाले का नाम"
के: कौन महापुरूष
पीए: और कौन.. श्री श्री 108 ताऊ बाबा..
वीडी: जय हो ताऊ बाबा की..
बीस्ट: जय हो..

उसी दौरान किसी अज्ञात जगह पर मणि और रजनी:

रजनी(मणि से): अरे के फोन कर रहा है।
मणि: पूछो कि वो लोग कहाँ हैं?
रजनी: हलो के..के..हाँ बोलो
उधर से(ताऊ): अरे हम ताऊ बोल रहे हैं... कौन कोना में घुसे हुए हो तुम लोग?
रजनी: ताऊऊउउउउ
ताऊ: कहाँ आऊँ? तुम लोग खाना ले लिए ना?
रजनी: खाना?
उधर हीं..पीए ताऊ से: स्ससाले ताऊ...खाना का बाद में पूछना..पहले पूछो कि वो लोग ट्रेन में चढे कि नहीं..चढे नहीं होंगे तो खाना क्या मोबाईल में ठूंसके भेजेंगे?
ताऊ (रजनी से): तुम लोग ट्रेन में चढा कि नहीं?
रजनी: ट्रेन में? अरे हाँ चढ गए हैं..तुमलोग कहाँ हो?
ताऊ: हम यहाँ हैं?
रजनी: हो गया.....खुश? यहाँ मतलब कहाँ?
ताऊ: अब कैसे बताएँ कि कहाँ हैं?
रजनी: नहीं बताओगे तो हम लोग तुमको ढूँढेंगे कैसे?
ताऊ(बीस्ट से): अरे बीस्ट..हमलोग कहाँ हैं?
बीस्ट(ताऊ से): समझा नहीं हम....कहाँ मतलब....ट्रेन में हैं
ताऊ(बीस्ट से): हमको दिखाई नहीं देता है क्या? मोतियाबिंद है हमको? सच कहते हैं कि पहलवान के पास दिमाग नहीं होता।
बीस्ट: ताऊ स्साले...
ताऊ(पीए से): तुम बताओगे कि हम कहाँ हैं..किस डब्बा में हैं?
पीए(ताऊ से): जनरल डब्बा में...पर पूछ काहे रहे हो तुम?
ताऊ(पीए से): हम किताब लिखने वाले हैं...इसलिए पूछे हैं... जब दिमाग बँट रहा था तो तुम कहाँ गए थे...सैलून में? बाल बनवाने...अरे उधर से रजनी पूछ रहा है..इसलिए पूछे तुमसे..
पीए(ताऊ से): तो तुम नहीं बता सकते हो?
रजनी(ताऊ से..फोन पर): ताऊ स्साले.... ड्राईवर से चल गया क्या पूछने? अरे बताएगा भी
ताऊ: अरे बता रहे हैं.....एक साथ सबलोग दिमाग मत चाटो....हमलोग जनरल डब्बा में मरा रहे हैं
रजनी: तो हम नाचें? इतना सारा जनरल डब्बा है....किस-किस में ढूँढेंगे तुमको
ताऊ: नहीं तो हम नाचे? वैसे भी टिकट हमारे पास है..इसलिए आना तो तुमको हीं होगा..
रजनी: ये बताओ कि तुम्हारे डब्बे के पास में कोई स्लीपर क्लास भी है क्या?
ताऊ: काहे? तुमको सोना है? स्साले.....तुम कहाँ हो ये बताओगे.....
रजनी: अरे.....वहीं तो हम बता रहे हैं....
ताऊ: क्या? कि क्लास में सो रहे हो?
रजनी: पीजे मत मारो.....
ताऊ: पीजे को मारना बहुत मुश्किल है भाई.....टीटी टेबल पर पीजे सबको मारता है.. बकर सुना-सुनाकर। उसको कोई नहीं मार पाता। जिस दिन उसको मार दिया, फिर देखना..
रजनी: कौन पीजे...फिर पीजे मार रहे हो तुम
ताऊ: अरे वही अपना आफिस वाला पीजे......तुम्हारा तो अच्छा दोस्त है। हाहाहा
मणि (रजनी से): अरे क्या कर रहे हो तुम लोग? पूछोगे कि कहाँ हैं वो लोग
रजनी (मणि से): नहीं तो और क्या कर रहा हूँ मैं? उसको लोरी सुना रहा हूँ? तुमको कोई दिक्कत है?...बैठो ना आराम से.. हाँ..खाना पकड़ के बैठना और उधर मत देखो....स्साले तुम्हारी गर्लफ्रेंड है। बोर हो रहे हो तो खाओ इसी में से....चावल भी है.
मणि: हम्म्म
ताऊ(रजनी से): किधर गया....सो गया क्या स्लीपर में? तुम स्लीपर में घुस गए हो?
रजनी(ताऊ से): हाँ....अब समझे तुम...प्रोसेशर चेंज करो। स्साले एस०डी० (सोफ़्टवेयर डेवलपर) के नाम पर कलंक हो तुम। चिंता(पहले पार्ट में भी नाम आया था...एस०डी० का देवता) से माँग लो नया....
ताऊ: अब तू पीजे मारने लगा। क्या होगा इस देश का? बता किस स्लीपर में है तू?
रजनी: तेरे डब्बे के पास कोई स्लीपर है....तू बस इतना बता..मैं खोज लूँगा।
ताऊ: तू भी तो देख सकता है कि तेरे स्लीपर के पास में कोई जनरल डब्बा है कि नहीं।
रजनी: अरे हाँ... हाँ हाँ..है तो एक
ताऊ: तो कर्जत (जहाँ हमें जाना है) पहुँचकर ढूँढना शुरू करेगा क्या?
रजनी: आता हूँ।
ताऊ: तो मैं फोन रखूँ। के का है। वो रो रहा है।
रजनी: तुम्हारा फोन क्या हुआ?
ताऊ: मैं खा गया...तुझे उससे क्या?
रजनी: रख दो।

थोड़ी देर बाद:
रजनी (फोन पर): के?
के: हाँ बोल
रजनी: ताऊ को फोन दे
ताऊ: हाँ, रजनी बोल
रजनी: पता चला कि जनरल डब्बा स्लीपर के बाईं ओर है।
ताऊ: तो आ जा। खाली पता करने को थोड़े हीं बोला था।
रजनी: कैसे आऊँ... वहीं रास्ते पर टी०सी० खड़ा है। और साला मणि भी नहीं मिल रहा है। उसको बताए कि तुमलोग जनरल डब्बे में हो तो वो तुम लोगों को खोजने निकल गया।
ताऊ: तो वो इधर हीं आ रहा होगा। तुम भी आ जाता साथ में। तुम कैसे अटक गया?
रजनी: अरे तो हम सोचें कि पहले पता कर लें तो निकलेंगे।
ताऊ: स्स्साले.....पता हीं करते रहो। स्लीपर में घुसने से पहले पता नहीं किए थे? अब रहो उधर हीं।
रजनी: नाटक मत करो....तुम आओ इधर....तुम्हारे पास तो टिकट है।
ताऊ: हम काहे आएँ......और वैसे भी हमारे पास स्लीपर का टिकट थोड़े हीं है।
रजनी: सबका एक हीं टिकट होता है।
ताऊ: हाँ तुम्हारे बाबूजी की ट्रेन है ना? तो एसी में काहे नहीं घुस गए।
वीडी (ताऊ से): ताऊ, मणि फोन कर रहा है।
ताऊ (वीडी से): क्या हुआ उसको?
वीडी: वो वाशरूम/बाथरूम/ट्वायलेट में छुपा हुआ है।
ताऊ: काहे....
वीडी: उसके पास टिकट जो नहीं है और टी०सी०(टिकट चेकर) बाहर हीं खड़ा है।
ताऊ: स्साले सब एक से बढकर एक हैं।
ताऊ (रजनी से): स्स्साले तुमलोगों को जनरल और स्लीपर में डिफरेंश नहीं बुझाता है क्या? कलर ब्लाईंड हो...कि पूरे अंधे हो?
रजनी: क्या हुआ?
ताऊ: अभी मणि फोन किया था....ट्वायलेट में हनीमुन मना रहा है।
रजनी: मतलब?
ताऊ: मतलब कि वो ट्वायलेट में डरकर बैठा हुआ है..टी०सी० से।
रजनी: शिट.....शिट..
ताऊ: अब इतना हमको थोड़े हीं पता है.....गेस करो...ट्वायलेट में है तो शिट तो होगा हीं.
रजनी: शिट मतलब सारा खाना उसी के पास है और वो खाना लेकर ट्वायलेट में घुस गया। हे भगवान......
ताऊ: शिट..शिट.. ******** (सेंसर्ड शब्द फिर से) साले तुम लोग भी...
बीस्ट(ताऊ से): क्या हुआ?
ताऊ: लड़का हुआ.....
के: मतलब?
ताऊ: मतलब कुछ नहीं....हम आ रहे हैं उन दोनों नौटंकियों को लेकर। तुम लोग यहीं रहना.. तुम लोग भी शिटपंथी मत करने लगना।
पीए(वीडी से): क्या बोला ताऊ?
वीडी: बोला कि ताऊपंथी मत करना....
के: और उससे पहले?
वीडी: बोला कि लड़का हुआ। अरे कुछ नही..... पीजे था.....और समझाऊँ?
बीस्ट: नहीं..समझ गया।
के: क्या फार्ट है!!

पार्ट-3 के लिए यहाँ जाएँ।

-विश्व दीपक
बांटें

रविवार, 20 दिसंबर 2009

ताऊयहाँपुर... सफर के आस-पास की कहानी (पार्ट-1)

- बोल जमूरे.....कहाँ है तू?
- हम यहाँ है।
- यहाँ? कहाँ यहाँ?
- यहाँ.....जहाँ चारो ओर हवा बह रही है..और कोने में तुम डमरू बजा रहे हो..
- तो हम कहाँ हैं?
- ये तो तुम जानो....अब तुम बताओ कि हम कहाँ हैं?
- अब समझ गए हम.....तुम भी इसी दुनिया में हो और हम भी इसी दुनिया में..
- समझ गए ना.. तो बोलो मदारी तुम्हें कैसी लगी यह दुनिया?
- बड़ी हीं उलूल-जुलूल है यह दुनिया....जहाँ खुद का पता भी दूसरे से जोड़कर देते हैं और दूसरा खुद को हीं ढूँढता रह जाता है। जमूरे तुम्हें मुबारक हो यह दुनिया क्योंकि तुम वैसे हीं नाच रहे हो मेरे इशारों पर...जैसे इंसान नाचता है बहुतों के इशारों पर..इसलिए तुम्हें जमेगी यह दुनिया..मैं तो चला।

कहते हैं कि वह जमूरा असल में इंसान हीं था और वह मदारी कोई भगवान। और कहानी से जाहिर है कि उस मदारी ने अपने हाथ खड़े कर दिए..यानि कि अब भगवान में भी इतनी ताकत नहीं है कि हम इंसानों को संभाल सके या दुनिया में जीने की राह बता सके। तब से हम ऐसे हीं भटक रहे हैं किसी और के इशारों पे...कभी "पैसों" के तो कभी "ऐशों" के..


ये तो थी ज्ञान की बातें...मतलब कि आम भाषा में "सेंटिमेंटल", "लेक्चर" या यूँ कहो "फालतू" बातें।
अब हम चलते हैं एक ऐसे सफर पर जहाँ हमें भी हमारे भटकाव से बचाने के लिए किसी "रहनुमा"/"गाइड" की जरूरत पड़ी थी और हमने उस रहनुमा का क्या दिमाग खाया था कि पूछो हीं मत।

Disclaimer: इस कहानी की घटनाएँ और पात्र वास्तविक हैं....लेकिन सारे संवाद काल्पनिक हैं। हाँ इतना जरूर है कि संवाद लिखते समय मैने पात्र की भाषा और शारीरिक-भाषा दोनों का पूरा ध्यान रखा है। जैसे कि ताऊ का अंदाज वैसा हीं है..जैसा इस कहानी में मालूम पड़ता है। (All the characters and incidents mentioned in this story are REAL but dialogues are fictitious. Even then I have followed the body language and LANGUAGE of all the characters how they look and how they speak in real life. For example, Tau behaves the same way as I have portrayed him in this story.)

उस सफ़र में कुल मिलाकर सात लोग थे... "ताऊ", "पीए", "वीडी", "के", "बीस्ट", "रजनी" और "मणि"।


सफर से एक दिन पहले:

- वीडी..चलोगे ट्रेकिंग पर?
- रजनी.. दे ट्रेकिंग किंग!! फिर जा रहे हो..गुड है...ये बताओ कि ताऊ चल रहा है?
- पूछने की बात है!! चलेगा हीं.. वही नेता है अपना...मतलब कि लीडर
- नेता है कि लेता है?
- हाहाहा...नेता भी है और लेता भी है.. ज्यादा नहीं..बस दो बूँद ज़िंदगी की।
- दो बूँद नहीं भाई..पल्स पोलियो के सारे खुराक हीं ले लेता है..हर बार
- तभी तो उसके पैरों में जान है और इरादों में भी
- तो जानदार इरादों वाला ताऊ चल रहा है....तब तो मस्ती होगी। ठीक है तो हम भी चलेंगे। बाकी कौन-कौन हैं साथ में?
- वही अपनी बटालियन। एंबिडेक्स्टरस पीए, "एन आई टी के" का प्रेसिडेंट के, "ब्युटी एंड द बीस्ट" का बीस्ट और गर्लफ़्रेंड वाला मणि।
- और बाकी हम दो..गए गुजरे... हाहाहा

वीडी ताऊ के पास जाकर:
- ताऊ...तो चल रहा है ना?
- साले, सब लोग मेरे पूँछ पे लटकके जाओगे क्या...हर कोई मुँह उठाकर आ जा रहा है और यही पूछ रहा है।
- जा रहा है कि नहीं? ....पूँछ का बाद में देखेंगे।
- ह्म्म्म
- अपना बीस्ट है हीं...हनुमान.....उससे उधार ले लेना...नहीं तो तू भी उसी की पूँछ में लटक जाना। अच्छा ये बता....उसकी गर्लफ़्रेंड नहीं जा रही?
- हम ठेका लिए हैं उन दोनों का? वैसे बंदियाँ भी होतीं तो मजा आ जाता।
- क्या मजा आता? वो लोग तुमको लिट्टी बनाके खिलातीं क्या?
- साले...लिट्टी से कभी आगे बढोगे कि नहीं.....एक ऐसा हीं रामपुरिया (अपने हीं ग्रुप का बिछड़ा हुआ एक साथी) है जो कभी दाल-भात-भुजिया के लिए रोता है तो कभी लिट्टी के लिए। उस साले की भी च्वाईस अजीब है...चाहिए बिहारी खाना और बंदी रखेगा हाई-फाई। लगता है कि वो ज़िंदगी-भर "राम भरोसे हिंदु होटल" में हीं खाता रहेगा। "ताऊ तुमको अपने कालेज के होटल में ले चलेंगे..वहाँ भुजिया खाना, वहाँ पुड़ी खाना" - डेढ साल से सुना-सुनाकर कान पका दिया.. लगता है कि हम उसके लिए भूखे बैठे हैं... साला.. वैसे उसको सड़ा हुआ सत्तू खिलाकर मजा आ गया। अभी घर जाएँगे तो खोजेंगे कि सत्तू फिर से कहीं सड़ रहा है कि नहीं... हाहाहा
- ताऊ..बख्श दो रामपुरिया को। तुम्हारा क्या बिगाड़ा है वो...कितना सीधा बच्चा है। अच्छा हम यह सोच रहे थे कि अगर बीस्ट की बंदी ट्रेकिंग पर जाती तो हमारा कितना फायदा होता।
- साला....फिर से बंदी और वो भी बीस्ट की। तुम अपने को "के" या "मुल्की" (एक और खोया हुआ दोस्त) समझे हो कि कुछ भी बोल दोगे और बीस्ट माफ़ कर देगा। पकड़के इतना धोएगा ना कि "वीडी" से "मुल्की" बन जाओगे...मतलब कि चूसे हुए आम।
- क्या ताऊ तुम भी। हम तो अंग्रेजी सीखने की बात कर रहे थे। हम तो ट्रेक क्या... बीस्ट के फ्युचर के बारे में भी सोच लिए।
- साले तुम फैमिली प्लानर बन रहे हो।
- हम कोई "भारत सरकार" हैं या हम कोई "माला-डी" हैं कि फैमिली प्लानर बनेंगे।
- तो?
- हम कह रहे हैं कि बीस्ट ज़िंदगी भर में अंग्रेजी तो सीख हीं जाएगा। बांग्ला न उसकी बंदी को आती है और तेलगु न उसको। तो अंग्रेजी में हीं बतियाएगा ना। "प्लीज..कैन यू कम हेअर?" "प्लीज.. नो मोर क्लोथ्स.. आई कैन नोट वास मोर।" "प्लीज.. नो मोर डिसेज.. आई कैन नोट....
- साला....तुमको अंग्रेजी आती है सही से? अभी भी फोन पर मैनेजर से "या..." "या..." हीं करते रहते हो। वो तो इसी बहाने सीख रहा है ना। तुम भी किसी मेम को ढूँढो... पंजाबियों में क्या रखा है (उन्हें तो हिंदी आती है).. साउथ इंडियन्स के पीछे जाओ।
- हम तो भाई पंजाबन के हीं पीछे जाएँगे.. तुम जाओ मद्रासन को ढूँढो.. वैसे तुम्हारी "उस" का क्या हाल है? आहा...अब समझा....इसीलिए तुम्हारी अंग्रेजी सुधर रही है। तभी तो "चिंता" (हमारे ग्रुप का भगवान) की इंग्लिश ठीक करते रहते हो।
- उस...कौन उस....जो भी उस थी वो फुस्स हो गई। मेरी छोड़ो..तुम बोलो कि तुम्हारी पंजाबन कैसी है...अभी तक तुम्हीं देखते रहते हो या वो भी देखती है?
- पीछे मुड़े तो देखे....पीछे तो हम हैं। देख लेगी वो भी कभी.. तब तक अपना "नयनसुख" तो चालू रहेगा। वैसे हम देखने में माहिर हैं और कोई हमको देखते हुए नहीं देख पाता।
- स्साले देखते हीं रहो... किसी दिन भैया कहके सैंया के साथ निकल लेगी तब जाकर दिमाग लगाना।
- दिल है भाई
- दिमाग लगाए हो आज तक कभी। किसी शायर ने सच हीं कहा था कि "शायर और पागल में फर्क नहीं होता, दोनों के पास बातों का तर्क नहीं होता।" जो भी पूछो तो दिल है..दिल है.. दिल का अचार डालोगे।
- तुम नहीं समझोगे।
- और तुम समझके तो लगता है कि मैदान मार लिए। छोड़ो स्साले.....तुम्हारी कितनी मारें। तुम्हारी तो खुद मरी पड़ी है।
- ताऊ......हम क्या पूछने आए थे?
- हम क्या जानें। हम कोई रिकार्डबुक हैं। अपने घुटनों पर जोर डालो...दिमाग तो है नहीं।
- तुम जा रहे हो कि नहीं ट्रेकिंग पर।
- फिर पूछ रहे हो। हमारे पूँछ में लटक के जाओगे? हाँ जाएँगे..क्या कर लोगे।
- कुछ नहीं..
- ना ना बोलो बोलो।
- बस यही कि नहा लेना.....एक सप्ताह से नहाए नहीं हो.. रास्ता भर साथ रहोगे...बदबू से बाकी छह लोग मर जाएँगे।
- हो गया?
- हाँ
- तो भागो अब.....काम करने दो।
- लेकिन नहा लेना ताऊ.. और टार्च भी खरीद लेना.. हमको भूत से बहुत डर लगता है।
- डरपोक स्साले.....भाग यहाँ से। हमको ऐसे हीं फ्लैटमेट्स मिलने थे: "वीडी" और "पीए".. दोनों के दोनों डरपोक..फट्टू
चोम: (हमारा हाफमाईंड दोस्त) क्या ताऊ...नहाते नहीं हो..छि
ताऊ: चल तेरे साथ नहाते हैं....
चोम: नहीं... नहीं....

सफर से लौटते वक्त(पुणे स्टेशन पर):

के(हर किसी से, बस बीस्ट को छोड़कर): एक जोक सुनेगा......सुन। पर, बीस्ट को मत बताना...नहीं तो वो मेरा कीमा बना देगा।
ताऊ: बनाके क्या करेगा....खाएगा तो नहीं... वेजिटेरियन है वो
के: हाहाहा......हो गया? अब मेरा जोक सुन।
पीए: बको।
के: बीस्ट का अभी तक अपर बडी मतलब कि कमर के ऊपर का भाग हीं रीजिड था। 25 किमी चलने के बाद उसके टाँग भी रीजिड हो गए। अब वो ऐसे चल रहा है (के डेमो देकर दिखाता है) बीस्ट के पास पहले आईरन बाडी थी अब आईरन लेग्स भी हो गए।
ताऊ: मतलब कि दो-दो आईरन......दो-दो लोहे। अब बीस्ट से हम लोहा ले सकते हैं....
के: क्या फार्ट है।
वीडी: ठीक तो बोल रहा है ताऊ। पहले हम लोहा लेते तो बीस्ट बरबाद हो गया होता..अब लेंगे तो उसके पास एक लोहा बचेगा।
मणि: लोहा लेना तो एक मुहावरा है ना।
रजनी: चलो यह भी समझ गया....सही है।
बीस्ट: अच्छा यह भी समझ गया.....क्या समझा तुम?
मणि: यही कि "सब जलता है हमसे"
बीस्ट: और तुम सब काहे हँस रहा है।
ताऊ: नहीं..तुम अच्छा चलता है। (बीस्ट के स्टाईल में)
बीस्ट: साल्ल्ले...

25 किमी के सफर की शुरूआत से पहले(पुणे स्टेशन के बाहर टार्च की दुकान पर):

वीडी: देखो... पीए टार्च तोड़ दिया।
बाकी लोग: क्या पीए..एक काम सही से नहीं कर सकते।
ताऊ: तुम्हारा फ्युचर तो हमको अंधेरा में दीख रहा है।
रजनी: अंधेरा में तुमको दीख भी रहा है।
ताऊ: भावनाओं को समझो। उसका फ्युचर अंधेरा में है.. मेन प्वाईंट ये है..स्साले..कुछ भी पकड़के लटक जाते हो।
पीए: हाँ ताऊ..तो प्वाईंट क्या है...(बालों में हाथ फेरते हुए)
ताऊ: एक बार और बाल झाड़ लो.. सारी बंदियाँ यहाँ तुम्हीं को तो देखने आई है। एक टार्च सही से जोड़ नहीं पाते। स्साले...
वीडी: ताऊ साले......आगे बोलोगे..या जलेबी हीं छानते रहोगे।
ताऊ: सबको बड़ा इन्ट्रेस्ट आ रहा है। नहीं बोलेंगे.. जाओ।
के: क्या ताऊ..क्या फार्ट है।
मणि: कितने बजे ट्रेन है?
बीस्ट: अभी आधा घंटा है।
ताऊ: आधा हीं घंटा है.....पूरा घंटा कब होगा........ पीजे था.....छोड़ो।
बीस्ट: क्या बोला?
रजनी: कुछ नहीं...बोला कि आधा घंटा जल्दी हीं खत्म हो जाएगा..
बीस्ट: ह्म्म्म
मणि: चलो तब तक खाने का सामान ले लेते हैं।
ताऊ: टिकट हमारे पास है। इसलिए हम बढ रहे हैं आगे..प्लेटफ़ार्म पे। जगह रखेंगे सब के लिए। तुमलोग तब तक खाना लेकर आओ।
रजनी: खुद तो हो तुम डेढ पसली के और सब के लिए जगह रखोगे। ट्रेन का नाम याद है ना...और प्लेटफार्म।
ताऊ: आधे घंटे बाद मुंबई जाने वाली दस ट्रेन आएगी क्या? हाँ प्लेटफार्म पता है।
मणि: तो जाओ.....वीडी, पीए, के, बीस्ट .....तुम सब भी जाओ। हम और रजनी खाना लेकर आते हैं।
पीए: रजनी....खाना खाने मत लगना। आ जाना टाईम पे।
रजनी: हमको वीडी समझा है?

ट्रेन खुलने से 2 मिनट पहले:

पीए(बीस्ट से): ताऊ किधर गया?
ताऊ: हम यहाँ हैं।
वीडी: यहाँ मतलब कहाँ.. ट्वाईलेट में घुस गया क्या? खाली आवाज़ रही है..
ताऊ: अरे हम यहाँ हैं...अरे इधर..गेट के पीछे।
के: क्या फार्ट है। बाहर निकलो...स्साले दब के मर जाओगे।
बीस्ट: अब कितना दबेगा ये। हाहाहा..
वीडी: ट्रेन खुलने वाली है। दोनों केटरर अभी तक नहीं आए।
पीए: केटरर....अच्छा मणि और रजनी।
बीस्ट: कोई बात नहीं...टिकट तो अपने हीं पास है।
के: अरे ट्रेन खुलने लगी भाई। फोन करो..
पीए(फोन पे): रजनी साले......किधर है...भाग के आ जल्दी
वीडी: क्या बोला वो?
पीए: आवाज़ नहीं आ रही थी साफ.. कुछ तो वो बक रहा था।
बीस्ट: वो छोड़ो..ताऊऊऊऊऊऊ.....टिकट है ना तुम्हारे पास
ताऊ: हाँ..क्या?
बीस्ट: ताऊ साले....टिकट
ताऊ: टिकट.....स्साला टिकट तो मणि ले लिया था। उसको टिकट चाहिए था।
वीडी: काहे?
ताऊ: हम क्या जानें।
पीए: तो साले ताऊ.....उसको बस उसी का टिकट देना था..सब देने की क्या जरूरत थी।
के: साले...ट्रेन खुल गई...क्या फार्ट है....

पार्ट-2 के लिए यहाँ जाएँ।

-विश्व दीपक
बांटें