रविवार, 27 दिसंबर 2009

ताऊयहाँपुर... रेलगाड़ी-रेलगाड़ी (पार्ट-2)

पार्ट-1 के लिए यहाँ जाएँ।

Disclaimer: इस कहानी के पात्र वास्तविक हैं....लेकिन सारी घटनाएँ और संवाद काल्पनिक हैं। हाँ इतना जरूर है कि संवाद लिखते समय मैने पात्र की भाषा और शारीरिक-भाषा दोनों का पूरा ध्यान रखा है। जैसे कि ताऊ का अंदाज वैसा हीं है..जैसा इस कहानी में मालूम पड़ता है। (All the characters mentioned in this story are REAL but incidents and dialogues are fictitious. Even then I have followed the body language and LANGUAGE of all the characters how they look and how they speak in real life. For example, Tau behaves the same way as I have portrayed him in this story.)

तो सिचुएशन यह है कि रजनी और मणि पुणे स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर झक मार रहे हैं....अरे नहीं केटरिंग कर रहे हैं...अरे नहीं नहीं ट्रेकिंग के लिए खाना खरीदने गए हैं और बाकी के पाँच लोग ट्रेन में एक-दूसरे का मुँह निहार रहे हैं..एक दूसरे का नहीं बस ताऊ का। क्यों? अब भी बताना होगा। ताऊ ने जो सारे के सारे टिकट मणि को दे दिए हैं। अब लोगों को कुछ सूझ नहीं रहा कि किया क्या जाए? कूद जाएँ ट्रेन से(नही..हड्डी पसली टूट जाएगी), ताऊ को फेंक दे ट्रेन से(ये अच्छा उपाय है, लेकिन फेंकने से मिलेगा क्या..ताऊ ठहरा आधी पसली का..आप सोच रहे होंगे कि पहले पार्ट में डेढ पसली लिखा था और अब वो आधी पसली हो गया...तो भाई हम यहाँ ताऊ की पसलियाँ गिनने के लिए जमा हुए हैं या फिर ताऊ की गलतियाँ...गलतियाँ ना..तो क्या फर्क पड़ता है- आधी पसली या डेढ पसली और वैसे भी ताऊ को जो देख ले वो पसलियाँ गिनना भूल जाए। स्स्स्साला...ये खाने को खाता है या फिर खाना इसको खा जाता है पता हीं नहीं चलता। तो इसे फेंककर भी क्या होगा...हड्डियाँ होंगीं तो टूटेंगी..तो यह आईडिया भी केंसिल), या फिर बैठे रहें टी०सी० (टिकट चेकर) के इंतज़ार में(और कोई उपाय है भी क्या?) आप खुद देख लीजिए कि आखिरकार ये क्या फैसला लेते हैं और आखिरकार इनके साथ क्या होता है।

छुक-छुक करती ट्रेन के अंदर धुक-धुक करते दिल:

के: साले...ट्रेन खुल गई...क्या फार्ट है....
बीस्ट: ट्रेन खुल गया? किधर से खुल गया..इंजन से या पटरी से? कन्फ्युज्ड बातें मत बोला करो। कहो कि ट्रेन चलने लगा.. समझा?
पीए: बीस्ट साले..पीजे मारता है....तू तो समझ गया ना...तो समझके क्या मिला तुमको? तंबूरा?
बीस्ट: हमको क्या बोलता है? ताऊ को बोल...बड़ा हीरो बन रहा था। हम जगह रखेगा...हम जा रहा है पहले। स्साला खुद आ गया और टिकट दे आया अपना बीवी को।
के: बीवी को...कि हसबेंड को...हाहाहा
बीस्ट: तेरा क्यों जल रहा है...तेरा बीवी है क्या वो... जब देखो मुँह खोल देता है..
के: सौरी
पीए: ताऊ..ताऊ..
वीडी: सुसाईड कर लिया क्या साले...बोलेगा कुछ?
ताऊ: स्स्साला हमहीं को बोलो सब। हम तुम लोगों का नौकर हैं? काहे बोलें हम कुछ। हमारी मर्जी...किसी को दें टिकट.. बीस्ट साले... खुद तो पहले आया नहीं.. और हमको 6 बजे के ट्रेन के लिए 4 बजे उठा दिया। क्या मस्ती से सो रहे थे.. फोन आया तो धरफराके उठे। उधर से बीस्ट हड़बड़ाके बोला कि ट्रेन आधा घंटा में है..जल्दी आओ। भाग के आए हम... और यहाँ आके देखते हैं कि...
वीडी: तुम अकेले आया था? हम भी तो आए थे।
ताऊ: स्साले तो तुम आके कौन-सा तीर मार लिए। मर-मरके टिकट के लाईन में तो हम लगे।
पीए: झूठ बोलेगा ताऊ। लाईन में हम लगे थे..टिकट हम कटाए थे।
के: के.. पीए तुम टिकट कटाया था? कैसे कटाया था टिकट..जैसे हमेशा कटाता है...अपना
बीस्ट: हाहाहाहा
वीडी: स्स्सालों...पीजे मारते रहो। और कोई काम-धाम तो है नहीं। सीरियस डिसकशन हो रहा है.. और इन जोकरों को मजाक सूझ रहा है। समझ रहे हो तुम लोग.....हम लोग डब्ल्यु० टी० जा रहे हैं।
के: विद टिकट?
ताऊ: दिमाग में गोबर भरा है? किधर है टिकट कि विद टिकट? विदाउट टिकट..
वीडी: सब बेवकूफ़ भरे हैं यहाँ
के: के
ताऊ: तो स्स्साले पीए...टिकट जब तुम कटाया तो टिकट हमारे पास आया कैसे? उसमें पंख लगा था क्या कि फुर्र फुर्र उड़ के आ गया? कुछ भी बक दो। ठीक है...हमको क्या.. लोग जब लेंगे न..तब बुझाएगा।
ताऊ(पीए को छोड़कर बाकी सबसे): लो भाई.. लो इसकी...तलाशी लो। करो..करो..इसका पौकेट चेक करो। इसी के पास है टिकट..
ताऊ(पीए से): और बनो हीरो। हम कटाए थे टिकट...अब निकालो... स्स्स्साले हीरो बनने की आदत नहीं गई। कटवा-कटवाके मन नहीं भरा? और मचाओ...जहाँ मचाने जाते हो वहीं कटता है तुम्हारा.. मचाओ यहाँ भी?
वीडी: मचादो यहाँ भी। हाहाहा
पीए: मतलब.
वीडी: छोड़ो...क्या करोगे......वैसे भी शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है।
के: नाम? ....ओके..के
पीए: वीडी स्स्साले.. शेक्सपियर के परपोते.. मौका मिला नहीं कि गजोधर स्टाईल में मुँह खोले और भक से बोल दिए।
अंग्रेजी में ए,बी,सी,डी के बाद सीधे शेक्स..शेक्सपियर हीं पढ लिए क्या? हम बता रहे हैं..तब हीं तुम्हारी अंग्रेजी इतनी खतरनाक है.. छोड़ो तुमसे अंग्रेजी पे बात करना और कलकत्ता पैदल जाना एकदम सेम टू सेम है।
ताऊ: कलकत्ता तो बीस्ट जाएगा.......तुम तो पुरूलिया जाओ। अच्छा..बाद में जाना.. पहले ये बताओ कि स्स्साला टिकट किधर रखे हो छुपाके
बीस्ट: साले तुमलोग टिकट छुपाके रखा है क्या?
के: क्या फ़ार्ट है..
वीडी: के.. तुम क्या फार्ट पे पी०एच०डी० किए हो? और कुछ बोलने नहीं आता।
के: क्या फार्ट है..
वीडी: हम्म्म्म.... होपलेस.. बेवकूफी की हद है
ताऊ: पीए बोलेगा कुछ..
पीए: नहीं है साले....टिकट मेरे पास नहीं है।
ताऊ: तो टिकट का तुम किए क्या?
बीस्ट: स्साले ताऊ.. जब तुम्हारे पास था नहीं तो काहे बोले कि हमारे पास है। और फिर मणि को कौन दिया? तुम कि पीए
वीडी: साला..लगता है कि हम पगला जाएँगे। अरे ताऊ, पीए...तुम दोनों सेटिंग करके आए हो क्या? नौटंकी मचा रखे हो।
ताऊ: पीए..रजनी को फोन करो फिर से...पूछो कि कहाँ है?
बीस्ट: क्यों?
ताऊ: टिकट मणि के पास हीं होगा
के: तो दिया कौन उसको टिकट
पीए(फोन पे): रजनी साले....कहाँ मरा रहा है...
बीस्ट: क्या बोला
पीए: कुछ बड़बड़ा रहा था..समझ नहीं आया।
ताऊ: स्साले.....तुम्हारी समझदानी में छेद है। सारा समझ चू गया है उसमें से.. समझ नहीं आता तो फोन लेकर चलते काहे हो? स्साला..इसीलिए तुमसे बंदी नहीं पटती...आएँ आएँ, हलो हलो करते रहोगे तो यही न होगा।
पीए: और जैसे कि तुमसे पट जाती है? खाली फंडा हीं दो।
ताऊ: अरे तुम क्या जानो। कभी आराम से बताएँगे। वैसे भी तुमको बताके क्या फायदा। आफिस की हर बंदी पर ट्राई कर चुके और स्कोर अभी भी ज़ीरो। एक्सेल पर सेशन देने से फ्रस्ट्रेशन खत्म नहीं होता.. बंदी बस मास्टर जी हीं समझती है और गुरू तो पिता के समान होता है। हाहाहा
पीए: साले ताऊ
बीस्ट: तुमलोग अपना गुरूपंथी खत्म करेगा। साला मौका मिला नहीं कि बंदी पे लेक्चर चालू कर देता है। जिसके पास बंदी है वो बोलता हीं नहीं..
के: बीस्ट अपनी बात कर रहा है।
वीडी: तू समझ गया। बहुत दिमाग है तेरे पास। कहाँ से चुराया है। हाहाहा
बीस्ट: तो क्या करना है?
ताऊ: के..तू फोन कर..मणि को।
के: के..साउंड्स गुड।
के(मणि से): कहाँ है तू? टिकट तेरे पास हीं है ना?
मणि (के से): नहीं...क्यों? टिकट तो...
के: साला सिग्नल चला गया।
वीडी: क्या बोला मणि?
के: टिकट उसके पास नहीं है। स्साले तुम लोग पी के आए हो क्या? टिकट लिया भी था कोई कि लालू की ट्रेन समझके आ गए तुम ताऊ...... गंध मचाए हुए हो।
ताऊ: अरे टिकट लिए तो थे...पीए लिया था....हम पैसा भी दिए थे...
पीए: और स्साले ताऊ....टिकट लेने के बाद हम पैसा के साथ तुमको टिकट भी दे दिए थे।
ताऊ: हम्म्म
बीस्ट: तो टिकट गया कहाँ?
वीडी: पीए, ताऊ.. तुम हीं दोनों में से किसी के पास होगा...याद करो।
ताऊ: याद आ गया।
बीस्ट: याद आया तो अगले साल बकेगा?
ताऊ: अभी बकते हैं..लोड काहे लेते हो।
बीस्ट: बकेगा कि उठाके फेंके तुमको बाहर। दिमाग का दही करके रखा हुआ है।
के: हाँ यार कब से पेशाब पिलाए जा रहा है। (एन०आई०टी० के० के प्रेसिडेंट को वहाँ का लिंगो, वहाँ की भाषा यूज करने का अधिकार है..इसलिए इस डायलोग को सेंसर नहीं किया जा सकता।)
पीए: टिकट ताऊ के पास हीं है। हम बता रहे हैं...हम जानते हैं
वीडी: ताऊउउउउउउ
ताऊ: क्या?
के: ताऊ तेरे पास है टिकट?
ताऊ: ह्म्म्म्म्म..... आई थिंक सो... देखना पड़ेगा...
बीस्ट: स्साले अंग्रेज की औलाद बताएगा
ताऊ: पहले ये बोल कि तू मारेगा तो नहीं..मारेगा तो नहीं बताऊँगा.. वैसे भी तो तू तीन गलती माफ़ करता है।
बीस्ट: तेरे हीं पास है...हम समझ गया....नौटंकी साला
ताऊ: हम्म्म... स्स्साला पीए हमको टिकट दिया और वही भूल गया... और बाकी तुम लोग तो महाराजा हो, टिकट कौन लिया..किसके पास है..मतलब हीं नहीं है..पिकनिक पे जा रहे हो तुम लोग स्स्साले
पीए: हम कहाँ भूले थे...हम तो बोले कि तुमको दिए हैं..अब तुम अपनी बीवी को ले आए बीच में तो हम क्या करते।
के: मणि की बात कर रहे हो?
वीडी: नहीं तुम्हारी कर रहा है...कभी कभी अक्ल भी लगा लिया करो.. अक्ल क्या घास चरने गई है तुम्हारी।
ताऊ: स्साले.. मणि की गर्लफ़्रेंड है...ऐसे हीं कुछ भी बोल देते हो..
पीए: तो स्साले......तुम्हीं न लाए उसको बीच में कि टिकट मणि को दिए हैं
ताऊ: और तुमलोग मान भी गए..
वीडी: तो हमलोगों को सपना आएगा.. हमको लगा कि तुम फिर से ताऊपंथी कर गए। पहले भी तो तुम ऐसा किए हो। टिकट लिए 20 का और स्टेशन गए 21 को। ट्रेन में घुसे तो असलियत मालूम पड़ी। फिर मुँह लटकाके निकले बाहर।
ताऊ: हर बार वही नहीं होता।
पीए: तुम्हारा क्या भरोसा।
ताऊ: लेकिन इस बार तो तुम लोग बेवकूफ बने। वीडी और पीए प्लेटफार्म से लेकर ट्रेन तक मेरे साथ था। फिर भी स्स्साला बेवकूफ बन गया दोनों। अंग्रेज 200 साल ऐसे हीं नहीं बेवकूफ़ बनाया था तुम लोगों को
बीस्ट: तुमलोगों को?
ताऊ: अरे भावनाओं को समझो...हमलोगों को... बोला कि कौआ कान ले गया है तो हमलोग कौआ को देखने लगे.. कान को देखते तो न अंग्रेज टेंशन देता और न तुमलोग टेंशन लेता
पीए: जय हो ताऊ बाबा की.....तो स्टडापा दिखा दिए।
ताऊ: तुम नहीं समझोगे.. अच्छा, आफिस में अगला बैच कब आ रहा है? सेशन तो तुम हीं लोगे..लग जाओ... मचा दो इस बार.....
बीस्ट: मचा दो.. हम्म्म्म
पीए: पिट जाओगे तुम लोग... हम बता रहे हैं।
बीस्ट: हम डर गया
ताऊ: बीस्ट इसको माफ कर दो..तीन गलती तो तुम ऐसे हीं माफ करता है।
वीडी: ताऊ..तेरा नंबर जल्दी आएगा। चुप हो जा।
ताउ: अच्छा..हाँ...
के: स्साला..यानि कि टिकट हम हीं लोगों के पास है
पीए: तुमको अभी समझ आया? ट्युबलाईट साले
के: अरे नहीं..वो तो मैं समझ गया। लेकिन मैं सोच रहा था कि जबरदस्त क्लाईमेक्स आएगा और हम लोग ताऊ को फेंक देंगे बाहर लेकिन ये तो एंटी-क्लाईमेक्स हो गया। टू बैड यार..
बीस्ट: स्साले इतना दिमाग तू "कैट" में लगाया होता तो कब का फोड़ देता। और टिकट यहीं है तो अच्छा है ना। हमलोग अब आराम से जाएगा।
के: हाँ यार.. समझदार है तू
वीडी: लेकिन वे दोनों अपने रसोईये कहाँ हैं..मतलब कि पार्सल-ब्व्याज..अरे मतलब कि रजनी और मणि..ताऊऊऊऊ
ताऊ: हम क्या उनको पौकेट में लेकर बैठे हैं। तुम भी यहीं है और हम भी यहीं है...ज्यादा चिंता हो रही है तो फोन करो उनको।
पीए: करें फोन?
ताऊ: तुम मत करो...बेकार में बिल उठेगा.. तुमको समझ तो कुछ आएगा नहीं
बीस्ट: तो स्साले ताऊ..तुम हीं करो फोन
ताऊ: ठीक है... फोन दो...के फोन लगाओ।
के: किधर लगाएँ...तुम्हारे कान में?
ताऊ: नहीं...अपने **** में लगा लो (ये शब्द सेंसर्ड हैं)। स्साले इधर फोन दो।
के: स्साले ताऊ..एक फोन तक नहीं रखता है।
ताऊ: फोन है.. लेकिन तुम्हारा फोन हमको अच्छा लगा...इसलिए इसी से बात करेंगे। किसी महापुरूष ने कहा है कि "दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम और फोन फोन पर लिखा है बतियाने वाले का नाम"
के: कौन महापुरूष
पीए: और कौन.. श्री श्री 108 ताऊ बाबा..
वीडी: जय हो ताऊ बाबा की..
बीस्ट: जय हो..

उसी दौरान किसी अज्ञात जगह पर मणि और रजनी:

रजनी(मणि से): अरे के फोन कर रहा है।
मणि: पूछो कि वो लोग कहाँ हैं?
रजनी: हलो के..के..हाँ बोलो
उधर से(ताऊ): अरे हम ताऊ बोल रहे हैं... कौन कोना में घुसे हुए हो तुम लोग?
रजनी: ताऊऊउउउउ
ताऊ: कहाँ आऊँ? तुम लोग खाना ले लिए ना?
रजनी: खाना?
उधर हीं..पीए ताऊ से: स्ससाले ताऊ...खाना का बाद में पूछना..पहले पूछो कि वो लोग ट्रेन में चढे कि नहीं..चढे नहीं होंगे तो खाना क्या मोबाईल में ठूंसके भेजेंगे?
ताऊ (रजनी से): तुम लोग ट्रेन में चढा कि नहीं?
रजनी: ट्रेन में? अरे हाँ चढ गए हैं..तुमलोग कहाँ हो?
ताऊ: हम यहाँ हैं?
रजनी: हो गया.....खुश? यहाँ मतलब कहाँ?
ताऊ: अब कैसे बताएँ कि कहाँ हैं?
रजनी: नहीं बताओगे तो हम लोग तुमको ढूँढेंगे कैसे?
ताऊ(बीस्ट से): अरे बीस्ट..हमलोग कहाँ हैं?
बीस्ट(ताऊ से): समझा नहीं हम....कहाँ मतलब....ट्रेन में हैं
ताऊ(बीस्ट से): हमको दिखाई नहीं देता है क्या? मोतियाबिंद है हमको? सच कहते हैं कि पहलवान के पास दिमाग नहीं होता।
बीस्ट: ताऊ स्साले...
ताऊ(पीए से): तुम बताओगे कि हम कहाँ हैं..किस डब्बा में हैं?
पीए(ताऊ से): जनरल डब्बा में...पर पूछ काहे रहे हो तुम?
ताऊ(पीए से): हम किताब लिखने वाले हैं...इसलिए पूछे हैं... जब दिमाग बँट रहा था तो तुम कहाँ गए थे...सैलून में? बाल बनवाने...अरे उधर से रजनी पूछ रहा है..इसलिए पूछे तुमसे..
पीए(ताऊ से): तो तुम नहीं बता सकते हो?
रजनी(ताऊ से..फोन पर): ताऊ स्साले.... ड्राईवर से चल गया क्या पूछने? अरे बताएगा भी
ताऊ: अरे बता रहे हैं.....एक साथ सबलोग दिमाग मत चाटो....हमलोग जनरल डब्बा में मरा रहे हैं
रजनी: तो हम नाचें? इतना सारा जनरल डब्बा है....किस-किस में ढूँढेंगे तुमको
ताऊ: नहीं तो हम नाचे? वैसे भी टिकट हमारे पास है..इसलिए आना तो तुमको हीं होगा..
रजनी: ये बताओ कि तुम्हारे डब्बे के पास में कोई स्लीपर क्लास भी है क्या?
ताऊ: काहे? तुमको सोना है? स्साले.....तुम कहाँ हो ये बताओगे.....
रजनी: अरे.....वहीं तो हम बता रहे हैं....
ताऊ: क्या? कि क्लास में सो रहे हो?
रजनी: पीजे मत मारो.....
ताऊ: पीजे को मारना बहुत मुश्किल है भाई.....टीटी टेबल पर पीजे सबको मारता है.. बकर सुना-सुनाकर। उसको कोई नहीं मार पाता। जिस दिन उसको मार दिया, फिर देखना..
रजनी: कौन पीजे...फिर पीजे मार रहे हो तुम
ताऊ: अरे वही अपना आफिस वाला पीजे......तुम्हारा तो अच्छा दोस्त है। हाहाहा
मणि (रजनी से): अरे क्या कर रहे हो तुम लोग? पूछोगे कि कहाँ हैं वो लोग
रजनी (मणि से): नहीं तो और क्या कर रहा हूँ मैं? उसको लोरी सुना रहा हूँ? तुमको कोई दिक्कत है?...बैठो ना आराम से.. हाँ..खाना पकड़ के बैठना और उधर मत देखो....स्साले तुम्हारी गर्लफ्रेंड है। बोर हो रहे हो तो खाओ इसी में से....चावल भी है.
मणि: हम्म्म
ताऊ(रजनी से): किधर गया....सो गया क्या स्लीपर में? तुम स्लीपर में घुस गए हो?
रजनी(ताऊ से): हाँ....अब समझे तुम...प्रोसेशर चेंज करो। स्साले एस०डी० (सोफ़्टवेयर डेवलपर) के नाम पर कलंक हो तुम। चिंता(पहले पार्ट में भी नाम आया था...एस०डी० का देवता) से माँग लो नया....
ताऊ: अब तू पीजे मारने लगा। क्या होगा इस देश का? बता किस स्लीपर में है तू?
रजनी: तेरे डब्बे के पास कोई स्लीपर है....तू बस इतना बता..मैं खोज लूँगा।
ताऊ: तू भी तो देख सकता है कि तेरे स्लीपर के पास में कोई जनरल डब्बा है कि नहीं।
रजनी: अरे हाँ... हाँ हाँ..है तो एक
ताऊ: तो कर्जत (जहाँ हमें जाना है) पहुँचकर ढूँढना शुरू करेगा क्या?
रजनी: आता हूँ।
ताऊ: तो मैं फोन रखूँ। के का है। वो रो रहा है।
रजनी: तुम्हारा फोन क्या हुआ?
ताऊ: मैं खा गया...तुझे उससे क्या?
रजनी: रख दो।

थोड़ी देर बाद:
रजनी (फोन पर): के?
के: हाँ बोल
रजनी: ताऊ को फोन दे
ताऊ: हाँ, रजनी बोल
रजनी: पता चला कि जनरल डब्बा स्लीपर के बाईं ओर है।
ताऊ: तो आ जा। खाली पता करने को थोड़े हीं बोला था।
रजनी: कैसे आऊँ... वहीं रास्ते पर टी०सी० खड़ा है। और साला मणि भी नहीं मिल रहा है। उसको बताए कि तुमलोग जनरल डब्बे में हो तो वो तुम लोगों को खोजने निकल गया।
ताऊ: तो वो इधर हीं आ रहा होगा। तुम भी आ जाता साथ में। तुम कैसे अटक गया?
रजनी: अरे तो हम सोचें कि पहले पता कर लें तो निकलेंगे।
ताऊ: स्स्साले.....पता हीं करते रहो। स्लीपर में घुसने से पहले पता नहीं किए थे? अब रहो उधर हीं।
रजनी: नाटक मत करो....तुम आओ इधर....तुम्हारे पास तो टिकट है।
ताऊ: हम काहे आएँ......और वैसे भी हमारे पास स्लीपर का टिकट थोड़े हीं है।
रजनी: सबका एक हीं टिकट होता है।
ताऊ: हाँ तुम्हारे बाबूजी की ट्रेन है ना? तो एसी में काहे नहीं घुस गए।
वीडी (ताऊ से): ताऊ, मणि फोन कर रहा है।
ताऊ (वीडी से): क्या हुआ उसको?
वीडी: वो वाशरूम/बाथरूम/ट्वायलेट में छुपा हुआ है।
ताऊ: काहे....
वीडी: उसके पास टिकट जो नहीं है और टी०सी०(टिकट चेकर) बाहर हीं खड़ा है।
ताऊ: स्साले सब एक से बढकर एक हैं।
ताऊ (रजनी से): स्स्साले तुमलोगों को जनरल और स्लीपर में डिफरेंश नहीं बुझाता है क्या? कलर ब्लाईंड हो...कि पूरे अंधे हो?
रजनी: क्या हुआ?
ताऊ: अभी मणि फोन किया था....ट्वायलेट में हनीमुन मना रहा है।
रजनी: मतलब?
ताऊ: मतलब कि वो ट्वायलेट में डरकर बैठा हुआ है..टी०सी० से।
रजनी: शिट.....शिट..
ताऊ: अब इतना हमको थोड़े हीं पता है.....गेस करो...ट्वायलेट में है तो शिट तो होगा हीं.
रजनी: शिट मतलब सारा खाना उसी के पास है और वो खाना लेकर ट्वायलेट में घुस गया। हे भगवान......
ताऊ: शिट..शिट.. ******** (सेंसर्ड शब्द फिर से) साले तुम लोग भी...
बीस्ट(ताऊ से): क्या हुआ?
ताऊ: लड़का हुआ.....
के: मतलब?
ताऊ: मतलब कुछ नहीं....हम आ रहे हैं उन दोनों नौटंकियों को लेकर। तुम लोग यहीं रहना.. तुम लोग भी शिटपंथी मत करने लगना।
पीए(वीडी से): क्या बोला ताऊ?
वीडी: बोला कि ताऊपंथी मत करना....
के: और उससे पहले?
वीडी: बोला कि लड़का हुआ। अरे कुछ नही..... पीजे था.....और समझाऊँ?
बीस्ट: नहीं..समझ गया।
के: क्या फार्ट है!!

पार्ट-3 के लिए यहाँ जाएँ।

-विश्व दीपक
बांटें

रविवार, 20 दिसंबर 2009

ताऊयहाँपुर... सफर के आस-पास की कहानी (पार्ट-1)

- बोल जमूरे.....कहाँ है तू?
- हम यहाँ है।
- यहाँ? कहाँ यहाँ?
- यहाँ.....जहाँ चारो ओर हवा बह रही है..और कोने में तुम डमरू बजा रहे हो..
- तो हम कहाँ हैं?
- ये तो तुम जानो....अब तुम बताओ कि हम कहाँ हैं?
- अब समझ गए हम.....तुम भी इसी दुनिया में हो और हम भी इसी दुनिया में..
- समझ गए ना.. तो बोलो मदारी तुम्हें कैसी लगी यह दुनिया?
- बड़ी हीं उलूल-जुलूल है यह दुनिया....जहाँ खुद का पता भी दूसरे से जोड़कर देते हैं और दूसरा खुद को हीं ढूँढता रह जाता है। जमूरे तुम्हें मुबारक हो यह दुनिया क्योंकि तुम वैसे हीं नाच रहे हो मेरे इशारों पर...जैसे इंसान नाचता है बहुतों के इशारों पर..इसलिए तुम्हें जमेगी यह दुनिया..मैं तो चला।

कहते हैं कि वह जमूरा असल में इंसान हीं था और वह मदारी कोई भगवान। और कहानी से जाहिर है कि उस मदारी ने अपने हाथ खड़े कर दिए..यानि कि अब भगवान में भी इतनी ताकत नहीं है कि हम इंसानों को संभाल सके या दुनिया में जीने की राह बता सके। तब से हम ऐसे हीं भटक रहे हैं किसी और के इशारों पे...कभी "पैसों" के तो कभी "ऐशों" के..


ये तो थी ज्ञान की बातें...मतलब कि आम भाषा में "सेंटिमेंटल", "लेक्चर" या यूँ कहो "फालतू" बातें।
अब हम चलते हैं एक ऐसे सफर पर जहाँ हमें भी हमारे भटकाव से बचाने के लिए किसी "रहनुमा"/"गाइड" की जरूरत पड़ी थी और हमने उस रहनुमा का क्या दिमाग खाया था कि पूछो हीं मत।

Disclaimer: इस कहानी की घटनाएँ और पात्र वास्तविक हैं....लेकिन सारे संवाद काल्पनिक हैं। हाँ इतना जरूर है कि संवाद लिखते समय मैने पात्र की भाषा और शारीरिक-भाषा दोनों का पूरा ध्यान रखा है। जैसे कि ताऊ का अंदाज वैसा हीं है..जैसा इस कहानी में मालूम पड़ता है। (All the characters and incidents mentioned in this story are REAL but dialogues are fictitious. Even then I have followed the body language and LANGUAGE of all the characters how they look and how they speak in real life. For example, Tau behaves the same way as I have portrayed him in this story.)

उस सफ़र में कुल मिलाकर सात लोग थे... "ताऊ", "पीए", "वीडी", "के", "बीस्ट", "रजनी" और "मणि"।


सफर से एक दिन पहले:

- वीडी..चलोगे ट्रेकिंग पर?
- रजनी.. दे ट्रेकिंग किंग!! फिर जा रहे हो..गुड है...ये बताओ कि ताऊ चल रहा है?
- पूछने की बात है!! चलेगा हीं.. वही नेता है अपना...मतलब कि लीडर
- नेता है कि लेता है?
- हाहाहा...नेता भी है और लेता भी है.. ज्यादा नहीं..बस दो बूँद ज़िंदगी की।
- दो बूँद नहीं भाई..पल्स पोलियो के सारे खुराक हीं ले लेता है..हर बार
- तभी तो उसके पैरों में जान है और इरादों में भी
- तो जानदार इरादों वाला ताऊ चल रहा है....तब तो मस्ती होगी। ठीक है तो हम भी चलेंगे। बाकी कौन-कौन हैं साथ में?
- वही अपनी बटालियन। एंबिडेक्स्टरस पीए, "एन आई टी के" का प्रेसिडेंट के, "ब्युटी एंड द बीस्ट" का बीस्ट और गर्लफ़्रेंड वाला मणि।
- और बाकी हम दो..गए गुजरे... हाहाहा

वीडी ताऊ के पास जाकर:
- ताऊ...तो चल रहा है ना?
- साले, सब लोग मेरे पूँछ पे लटकके जाओगे क्या...हर कोई मुँह उठाकर आ जा रहा है और यही पूछ रहा है।
- जा रहा है कि नहीं? ....पूँछ का बाद में देखेंगे।
- ह्म्म्म
- अपना बीस्ट है हीं...हनुमान.....उससे उधार ले लेना...नहीं तो तू भी उसी की पूँछ में लटक जाना। अच्छा ये बता....उसकी गर्लफ़्रेंड नहीं जा रही?
- हम ठेका लिए हैं उन दोनों का? वैसे बंदियाँ भी होतीं तो मजा आ जाता।
- क्या मजा आता? वो लोग तुमको लिट्टी बनाके खिलातीं क्या?
- साले...लिट्टी से कभी आगे बढोगे कि नहीं.....एक ऐसा हीं रामपुरिया (अपने हीं ग्रुप का बिछड़ा हुआ एक साथी) है जो कभी दाल-भात-भुजिया के लिए रोता है तो कभी लिट्टी के लिए। उस साले की भी च्वाईस अजीब है...चाहिए बिहारी खाना और बंदी रखेगा हाई-फाई। लगता है कि वो ज़िंदगी-भर "राम भरोसे हिंदु होटल" में हीं खाता रहेगा। "ताऊ तुमको अपने कालेज के होटल में ले चलेंगे..वहाँ भुजिया खाना, वहाँ पुड़ी खाना" - डेढ साल से सुना-सुनाकर कान पका दिया.. लगता है कि हम उसके लिए भूखे बैठे हैं... साला.. वैसे उसको सड़ा हुआ सत्तू खिलाकर मजा आ गया। अभी घर जाएँगे तो खोजेंगे कि सत्तू फिर से कहीं सड़ रहा है कि नहीं... हाहाहा
- ताऊ..बख्श दो रामपुरिया को। तुम्हारा क्या बिगाड़ा है वो...कितना सीधा बच्चा है। अच्छा हम यह सोच रहे थे कि अगर बीस्ट की बंदी ट्रेकिंग पर जाती तो हमारा कितना फायदा होता।
- साला....फिर से बंदी और वो भी बीस्ट की। तुम अपने को "के" या "मुल्की" (एक और खोया हुआ दोस्त) समझे हो कि कुछ भी बोल दोगे और बीस्ट माफ़ कर देगा। पकड़के इतना धोएगा ना कि "वीडी" से "मुल्की" बन जाओगे...मतलब कि चूसे हुए आम।
- क्या ताऊ तुम भी। हम तो अंग्रेजी सीखने की बात कर रहे थे। हम तो ट्रेक क्या... बीस्ट के फ्युचर के बारे में भी सोच लिए।
- साले तुम फैमिली प्लानर बन रहे हो।
- हम कोई "भारत सरकार" हैं या हम कोई "माला-डी" हैं कि फैमिली प्लानर बनेंगे।
- तो?
- हम कह रहे हैं कि बीस्ट ज़िंदगी भर में अंग्रेजी तो सीख हीं जाएगा। बांग्ला न उसकी बंदी को आती है और तेलगु न उसको। तो अंग्रेजी में हीं बतियाएगा ना। "प्लीज..कैन यू कम हेअर?" "प्लीज.. नो मोर क्लोथ्स.. आई कैन नोट वास मोर।" "प्लीज.. नो मोर डिसेज.. आई कैन नोट....
- साला....तुमको अंग्रेजी आती है सही से? अभी भी फोन पर मैनेजर से "या..." "या..." हीं करते रहते हो। वो तो इसी बहाने सीख रहा है ना। तुम भी किसी मेम को ढूँढो... पंजाबियों में क्या रखा है (उन्हें तो हिंदी आती है).. साउथ इंडियन्स के पीछे जाओ।
- हम तो भाई पंजाबन के हीं पीछे जाएँगे.. तुम जाओ मद्रासन को ढूँढो.. वैसे तुम्हारी "उस" का क्या हाल है? आहा...अब समझा....इसीलिए तुम्हारी अंग्रेजी सुधर रही है। तभी तो "चिंता" (हमारे ग्रुप का भगवान) की इंग्लिश ठीक करते रहते हो।
- उस...कौन उस....जो भी उस थी वो फुस्स हो गई। मेरी छोड़ो..तुम बोलो कि तुम्हारी पंजाबन कैसी है...अभी तक तुम्हीं देखते रहते हो या वो भी देखती है?
- पीछे मुड़े तो देखे....पीछे तो हम हैं। देख लेगी वो भी कभी.. तब तक अपना "नयनसुख" तो चालू रहेगा। वैसे हम देखने में माहिर हैं और कोई हमको देखते हुए नहीं देख पाता।
- स्साले देखते हीं रहो... किसी दिन भैया कहके सैंया के साथ निकल लेगी तब जाकर दिमाग लगाना।
- दिल है भाई
- दिमाग लगाए हो आज तक कभी। किसी शायर ने सच हीं कहा था कि "शायर और पागल में फर्क नहीं होता, दोनों के पास बातों का तर्क नहीं होता।" जो भी पूछो तो दिल है..दिल है.. दिल का अचार डालोगे।
- तुम नहीं समझोगे।
- और तुम समझके तो लगता है कि मैदान मार लिए। छोड़ो स्साले.....तुम्हारी कितनी मारें। तुम्हारी तो खुद मरी पड़ी है।
- ताऊ......हम क्या पूछने आए थे?
- हम क्या जानें। हम कोई रिकार्डबुक हैं। अपने घुटनों पर जोर डालो...दिमाग तो है नहीं।
- तुम जा रहे हो कि नहीं ट्रेकिंग पर।
- फिर पूछ रहे हो। हमारे पूँछ में लटक के जाओगे? हाँ जाएँगे..क्या कर लोगे।
- कुछ नहीं..
- ना ना बोलो बोलो।
- बस यही कि नहा लेना.....एक सप्ताह से नहाए नहीं हो.. रास्ता भर साथ रहोगे...बदबू से बाकी छह लोग मर जाएँगे।
- हो गया?
- हाँ
- तो भागो अब.....काम करने दो।
- लेकिन नहा लेना ताऊ.. और टार्च भी खरीद लेना.. हमको भूत से बहुत डर लगता है।
- डरपोक स्साले.....भाग यहाँ से। हमको ऐसे हीं फ्लैटमेट्स मिलने थे: "वीडी" और "पीए".. दोनों के दोनों डरपोक..फट्टू
चोम: (हमारा हाफमाईंड दोस्त) क्या ताऊ...नहाते नहीं हो..छि
ताऊ: चल तेरे साथ नहाते हैं....
चोम: नहीं... नहीं....

सफर से लौटते वक्त(पुणे स्टेशन पर):

के(हर किसी से, बस बीस्ट को छोड़कर): एक जोक सुनेगा......सुन। पर, बीस्ट को मत बताना...नहीं तो वो मेरा कीमा बना देगा।
ताऊ: बनाके क्या करेगा....खाएगा तो नहीं... वेजिटेरियन है वो
के: हाहाहा......हो गया? अब मेरा जोक सुन।
पीए: बको।
के: बीस्ट का अभी तक अपर बडी मतलब कि कमर के ऊपर का भाग हीं रीजिड था। 25 किमी चलने के बाद उसके टाँग भी रीजिड हो गए। अब वो ऐसे चल रहा है (के डेमो देकर दिखाता है) बीस्ट के पास पहले आईरन बाडी थी अब आईरन लेग्स भी हो गए।
ताऊ: मतलब कि दो-दो आईरन......दो-दो लोहे। अब बीस्ट से हम लोहा ले सकते हैं....
के: क्या फार्ट है।
वीडी: ठीक तो बोल रहा है ताऊ। पहले हम लोहा लेते तो बीस्ट बरबाद हो गया होता..अब लेंगे तो उसके पास एक लोहा बचेगा।
मणि: लोहा लेना तो एक मुहावरा है ना।
रजनी: चलो यह भी समझ गया....सही है।
बीस्ट: अच्छा यह भी समझ गया.....क्या समझा तुम?
मणि: यही कि "सब जलता है हमसे"
बीस्ट: और तुम सब काहे हँस रहा है।
ताऊ: नहीं..तुम अच्छा चलता है। (बीस्ट के स्टाईल में)
बीस्ट: साल्ल्ले...

25 किमी के सफर की शुरूआत से पहले(पुणे स्टेशन के बाहर टार्च की दुकान पर):

वीडी: देखो... पीए टार्च तोड़ दिया।
बाकी लोग: क्या पीए..एक काम सही से नहीं कर सकते।
ताऊ: तुम्हारा फ्युचर तो हमको अंधेरा में दीख रहा है।
रजनी: अंधेरा में तुमको दीख भी रहा है।
ताऊ: भावनाओं को समझो। उसका फ्युचर अंधेरा में है.. मेन प्वाईंट ये है..स्साले..कुछ भी पकड़के लटक जाते हो।
पीए: हाँ ताऊ..तो प्वाईंट क्या है...(बालों में हाथ फेरते हुए)
ताऊ: एक बार और बाल झाड़ लो.. सारी बंदियाँ यहाँ तुम्हीं को तो देखने आई है। एक टार्च सही से जोड़ नहीं पाते। स्साले...
वीडी: ताऊ साले......आगे बोलोगे..या जलेबी हीं छानते रहोगे।
ताऊ: सबको बड़ा इन्ट्रेस्ट आ रहा है। नहीं बोलेंगे.. जाओ।
के: क्या ताऊ..क्या फार्ट है।
मणि: कितने बजे ट्रेन है?
बीस्ट: अभी आधा घंटा है।
ताऊ: आधा हीं घंटा है.....पूरा घंटा कब होगा........ पीजे था.....छोड़ो।
बीस्ट: क्या बोला?
रजनी: कुछ नहीं...बोला कि आधा घंटा जल्दी हीं खत्म हो जाएगा..
बीस्ट: ह्म्म्म
मणि: चलो तब तक खाने का सामान ले लेते हैं।
ताऊ: टिकट हमारे पास है। इसलिए हम बढ रहे हैं आगे..प्लेटफ़ार्म पे। जगह रखेंगे सब के लिए। तुमलोग तब तक खाना लेकर आओ।
रजनी: खुद तो हो तुम डेढ पसली के और सब के लिए जगह रखोगे। ट्रेन का नाम याद है ना...और प्लेटफार्म।
ताऊ: आधे घंटे बाद मुंबई जाने वाली दस ट्रेन आएगी क्या? हाँ प्लेटफार्म पता है।
मणि: तो जाओ.....वीडी, पीए, के, बीस्ट .....तुम सब भी जाओ। हम और रजनी खाना लेकर आते हैं।
पीए: रजनी....खाना खाने मत लगना। आ जाना टाईम पे।
रजनी: हमको वीडी समझा है?

ट्रेन खुलने से 2 मिनट पहले:

पीए(बीस्ट से): ताऊ किधर गया?
ताऊ: हम यहाँ हैं।
वीडी: यहाँ मतलब कहाँ.. ट्वाईलेट में घुस गया क्या? खाली आवाज़ रही है..
ताऊ: अरे हम यहाँ हैं...अरे इधर..गेट के पीछे।
के: क्या फार्ट है। बाहर निकलो...स्साले दब के मर जाओगे।
बीस्ट: अब कितना दबेगा ये। हाहाहा..
वीडी: ट्रेन खुलने वाली है। दोनों केटरर अभी तक नहीं आए।
पीए: केटरर....अच्छा मणि और रजनी।
बीस्ट: कोई बात नहीं...टिकट तो अपने हीं पास है।
के: अरे ट्रेन खुलने लगी भाई। फोन करो..
पीए(फोन पे): रजनी साले......किधर है...भाग के आ जल्दी
वीडी: क्या बोला वो?
पीए: आवाज़ नहीं आ रही थी साफ.. कुछ तो वो बक रहा था।
बीस्ट: वो छोड़ो..ताऊऊऊऊऊऊ.....टिकट है ना तुम्हारे पास
ताऊ: हाँ..क्या?
बीस्ट: ताऊ साले....टिकट
ताऊ: टिकट.....स्साला टिकट तो मणि ले लिया था। उसको टिकट चाहिए था।
वीडी: काहे?
ताऊ: हम क्या जानें।
पीए: तो साले ताऊ.....उसको बस उसी का टिकट देना था..सब देने की क्या जरूरत थी।
के: साले...ट्रेन खुल गई...क्या फार्ट है....

पार्ट-2 के लिए यहाँ जाएँ।

-विश्व दीपक
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