मंगलवार, 12 जनवरी 2010

ताऊयहाँपुर... रेलगाड़ी.. जनरल और स्लीपर (पार्ट-3)

पार्ट-2 के लिए यहाँ जाएँ।

Disclaimer: इस कहानी के पात्र वास्तविक हैं....लेकिन सारी घटनाएँ और संवाद काल्पनिक हैं। हाँ इतना जरूर है कि संवाद लिखते समय मैने पात्र की भाषा और शारीरिक-भाषा दोनों का पूरा ध्यान रखा है। जैसे कि ताऊ का अंदाज वैसा हीं है..जैसा इस कहानी में मालूम पड़ता है। (All the characters mentioned in this story are REAL but incidents and dialogues are fictitious. Even then I have followed the body language and LANGUAGE of all the characters how they look and how they speak in real life. For example, Tau behaves the same way as I have portrayed him in this story.)

तो भाईयों और भाभियों (हमारी खुशकिस्मती से अगर एक भी इधर पधारी हों तो) सिचुएशन बड़ा हीं रोमां..रोमांटिक नहीं रोमांचक हो चला है, रोमांटिक होने का तो कोई स्कोप हीं नहीं है क्योंकि सात मर्द रेलगाड़ी की भीड़-भाड़ में एक-दूसरे पर गालियों की बौछार कर रहे हैं और इन खुल्ले सांडों को अभी ट्रेकिंग के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा। हाँ, अगर ये लोग किसी और जगह, किसी और मौके पर होते तब तो भाई सांडपना की उम्मीद की जा सकती थी, लेकिन अभी कोई चांस नहीं.. अह्ह्ह्ह क्या सोचने लगे आप? भाई साहब ये लोग ऐसे-वैसे नहीं है, मतलब कि 377 हट गया तो क्या हुआ.. भगवान के साथ ईमानदारी भी कोई चीज होती है..आखिरकार ऊपरवाले ने मर्द और औरत नाम के दो प्राणी कुछ सोचकर हीं बनाए होंगे ना? जब उसने भेद रखा तो हम कोई भेद क्यों न रखें..तो ये सारे लोग भले हीं मन हीं मन किसी अप्सरा के ख्वाब में गुम हों, लेकिन हकीकत में ये सारे रेलगाड़ी में यहाँ-वहाँ, इधर-उधर, न जाने किधर-किधर गुमनामी की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। इन्हीं गुमनामों में से एक हैं रजनी "माइंड इट"। ये कभी भी यह माइंड नहीं करते कि उनके माइंड को भाव नहीं दिया जाता। इसलिए तो खूब सारा दिमाग (सौ फीसदी से भी ज्यादा युटिलाईजेशन..) लगाकर वो स्लीपर में चढ गए और अब मरे जा रहे हैं कि स्लीपर से जनरल में डिग्रेड/डिपोट होवें तो कैसे। अगले हैं मणि "द जीम-गोवर" (इस नाम के पीछे की कहानी जल्द हीं खुलेगी..इंतज़ार करिए, ऐतबार रखिए)जो हर बार कुछ अच्छा और अलग करने की कोशिश करते हैं, लेकिन इनका हश्र भी वही होता है, जैसा जिमी शेरगिल का होता है, हर फ्लाप फिल्म के बाद। ये महाशय चले तो थे स्लीपर से जनरल की ओर, दूरी कुछ ज्यादा नहीं थी, बस बार्डर पार करना था, लेकिन इन्हें बार्डर पर बने बंकरों में शरण लेनी पड़ी यानि की ट्वायलेट में। सो सैड ना? क्या कीजिएगा.. दिमाग-दिमाग की बात है। इन दोनों का सबसे पहले ज़िक्र इसलिए किया है क्योंकि कहानी इन्हीं पर रूकी हुई है। और इस कहानी को जो धक्का देकर आगे ले जाने वाले हैं, उस किरदार, उस कैरेक्टर (जो सच में एक कैरेक्टर है) का नाम है ताऊ "द डिशिजन-मेकर" (अब आप सोच रहे होंगे, कि ये कैसा नाम है...सब्र कीजिए, जल्द हीं पर्दाफाश होगा)। तो मंझधार में फंसे रजनी और मणि को तारने(आईटम को तारने वाला तारना नहीं, तारण करने वाला तारना) के लिए निकल पड़े हैं हमारे ताऊ.. आप खुद देखिए आगे क्या होता है।

रेलगाड़ी के जनरल डब्बे में:

ताऊ: हम आ रहे हैं उन दोनों नौटंकियों को लेकर। तुम लोग यहीं रहना..तुम लोग भी शिटपंथी मत करने लगना।
के: क्या फार्ट है!!
वीडी: हम्म..फिर से.. चुप हो जा के, ताऊ शिटपंथी से मना किया है।
बीस्ट: तो ये शिटपंथी थोड़े हीं कर रहा है, ये तो फार्टपंथी कर रहा है। ये उतना भी डाऊन टू अर्थ नहीं है।
पीए: हम समझे नहीं..क्या बक** है।
बीस्ट: मतलब कि ये उतना भी गिरा हुआ इंसान नहीं है।
पीए: बीस्ट साल्ले..पीजे की दुकान खोल रखी है क्या?
के: क्या फार्ट है!!
वीडी: छोड़, तेरा कुछ नहीं हो सकता। बीस्ट तेरा भी और के तेरा भी....के तेरा तो कुछ भी नहीं हो सकता...बेवकूफ़ी के बादशाह हो तुम....बेवकूफ़ साल्ले।
पीए: हाहाहाहा
वीडी: और तुम भी....इटियट्स...कहाँ फँस गया हूँ मैं।
पीए: मतलब कि हम थ्री इटियट्स हैं
बीस्ट: और वीडी चतुर द साइलेंशर..
के: अब तो फार्ट है हीं...कहीं न कहीं..सब लोग अपना-अपना नाक बंद करो।
पीए: वीडी.. अब तो तुमको भी जाना चाहिए ट्वायलेट...जाओ-जाओ ताऊ के पीछे जाओ.... और देखो मणि जैसे हीं निकले, तुम घुस जाना। वो तो नकली में घुसा है, तुमको असली में जरूरत है।
बीस्ट: हाहाहाहा
वीडी: घुस जाओ......और घुस जाओ...स्सालों...काम के न काज के, दुश्मन अनाज के। टेंशन पर टेंशन दिए जा रहे हो.. बोलो तो खोल के खड़ा हो जाऊँ, जितनी मारनी है मार लेना।
बीस्ट: छी.. क्या बोलता रहता है!
के: क्या बोलता रहता है?
बीस्ट: क्या?
के: वही तो क्या?
वीडी: फारसी बोल रहा हूँ..तुम लोगों को समझ नहीं आ रहा क्या? काहे दिमाग का दही किए हुए हो तुम सब। शांत बैठने का क्या लोगे?
बीस्ट: हम लेता नहीं देता है...
के: स्साला बीस्ट..गंदी बात करता है...
पीए: हाँ भाई, एक्सपिरियंस्ड आदमी है..तो बोलेगा हीं
बीस्ट: पीए साले....हम फंडा की बात कर रहा था
पीए: तो हम भी तो वही समझे थे..तुमको क्या लगा? दिमाग में कीड़ा भरा है तो हम क्या कर सकते हैं।
वीडी: लोग सही कहते हैं कि बेवकूफ़ दोस्त से समझदार दुश्मन ज्यादा अच्छा होता है..
के: अच्छा...वहीं मै सोच रहा था कि फेसबुक से मेरे फ्रेंड-लिस्ट से लोग गायब क्यों हो रहे हैं?
बीस्ट: अब ये क्या फंडा है...
के: अब मैं तो हूँ समझदार....होशियार.....तो लोग दुश्मन बनाएँगे ना....मतलब कि दोस्ती खत्म
पीए: स्साले तुम होशियार नहीं......सियार हो.... रात को जो हुआँ-हुआँ करते हैं ना....वो
बीस्ट: हम्म
पीए: और बीस्ट रंगा सियार.. बडी बना के खुद को शेर समझ रहा है.. पर है तो सियार हीं.. हुआँ हुआँ
के: और पीए तुम....तुम तो ढेंचू ढेंचू करने वाले गदहे हो.......ढेंचू ढेंचू.. बेंचो**
पीए: के गाली दिया....अच्छा लगा..मोगैंबो खुश हुआ
बीस्ट: अच्छा लगा तो टीवी से निकाल और मोबाईल में डाल
के: मतलब
बीस्ट: कुछ नहीं...पीजे था
के: बीस्ट साले...... पीए, तू बता..और दूँ गाली?
पीए: हाँ दे
के: छोड़...तेरे को गाली देके क्या फायदा.. गाली की भी एक औकात होती है और तेरी तो है नहीं।
पीए: ओके.. लेकिन तुम्हारी तो औकात है..तो तुमको हम गाली देते हैं। पर ये बता, तू मारेगा तो नहीं ना..
के: मैं..मारूँगा?
पीए: अरे हाँ..तू तो मार खाता है..मारता नहीं..औकात वाला है तू..औकात की मार खाता है
के: मतलब
पीए: स्क्वैश खेलता है और नाक तुड़वा लेता है...ये कम है क्या..औकात की मार...वैसे रामपुरिया (इसका जिक्र पहले पार्ट में आया था) की लिट्टी चुरा ली थी क्या तूने या फिर रामपुरिया के सामने मुदित (रामपुरिया का एक्स-फ्लैटमेट) की बड़ाई कर दी थी..क्या किया था तूने कि उसने आव देखा न ताव..और तेरे नाक का भाव बिगाड़ दिया।
के: कुछ नहीं..बस उससे स्क्वैश सीखने गया था..
पीए: स्साले..जिसको जो आए, उससे वही सीखना चाहिए ना.. बंदर के हाथ में रेजर दोगे तो वो तुम्हारी शेविंग करेगा कि थोपड़े का नक्शा हीं बिगाड़ देगा।
बीस्ट: बिगाड़ तो दिया.. ये कभी मल्लिका शेरावत हुआ करता था, अब राखी सावंत का ज़ेरोक्स बन गया है। ज़ीज़स.. गणपति बप्पा.. एलिस के पप्पा... और तेरे नाक पे रामपुरिया का ठप्पा
के: क्या फार्ट है..
वीडी: स्सालों..मछली बाज़ार बनाके रखे हुए हो..जब देखो तो बकर-बकर..
पीए: सौ चूहे खा के बिल्ली चली हज़ को.. वीडी साले.. तुम तो मत हीं बोलो.. खुद हल्ला करते हो। आफिस में कान फाड़के रखे रहते हो। एक उधर पीएच(आफिस की हिडिंबा) है, जिसका पीएच हमेशा हीं सात से ऊपर रहता है और एक तुम हो जो साला न जाने किसको सुनाने को..हाँ याद आया अपनी पंजाबन को सुनाने को दिन भर कुछ भी अकड़म-बकड़म बकते रहते हो। और वो घास भी नहीं डालती
वीडी: तो हम घोड़ा हैं कि घास डालेगी..
के: तुम क्या हो...अरे ये वीडी क्या बोलता है हमेशा
पीए: बुरबक
के: हाँ वही..तुम बुरबक हो
बीस्ट: पीए सही बोल रहा है
वीडी: बीस्ट साले..तुम कैसे सुन लेते हो..तुम तो अपनी महबूबा टीबी के पास बैठते हो..टीबी समझे ना, जिसमें दिन-भर अलग-अलग चैनल आता रहता है.. एकदम झकास चैनल.. पता है पीए तो पहले हीं दिन उसमें एफ़ टीवी देखने बैठ गया था.. पता चला कि वहाँ तो सास-बहू के सिरियल्स के अलावा कुछ नहीं आता.. हाहा.. जबरदस्त कटा पीए का।
के: तो इसमें नया क्या है?
पीए: बात से मत भटको।
वीडी: तुम तो दिमाग से हीं भटके हुए हो.. तो हम क्या बात से भी न भटकें।
बीस्ट: चलो यू-टर्न लो..
पीए: हाँ तो.. वीडी साले...ये बताओ कि ट्रेन में बकर नहीं करेंगे तो क्या गाँधी जी के बंदर बनके बैठे रहेंगे.. अलग बात है कि तुम तीन अभी बंदर हीं लग रहे हो.. फिर भी हमारी कुछ इमेज तो है ना
वीडी: हाँ इमेज तो है
बीस्ट: रोडसाईड रोमियो का... जो फोन पर भी लाईन मारता है.. आवाज़ सुनके हीं जिसका इमोशन खड़ा हो जाता है।
के: इमोशन्स हीं ना
बीस्ट: स्साला... हम सब खोलके बोलेगा क्या... बचपन में फिल इन द ब्लैक्स नहीं पढा था।
पीए: वो तो पढा हीं होगा... ब्लैंक्स भरने में मज़ा तो आता हीं है.. है ना?
के: पता नहीं... बीस्ट से पूछो.. मैं तो भाई अब तक अपना हाथ जगन्नाथ पर हीं ज़िंदा हूँ।
वीडी: ये हो क्या रहा है? मौका मिलते हीं चिकेन-मटन चबाना शुरू कर देते हो। स्साला बीस्ट... तू तो वेज है, फिर ये नान-वेज क्यों?
बीस्ट: 21 से ज्यादा उम्र का है हम.. कुछ भी बोल सकता है.. मारवाड़ी लोगों को नान-वेज खाना मना है, बोलना नहीं.. और बोलेगा नहीं तो फिर घर में अगला मारवाड़ी आएगा कैसे? हिसाब-किताब रखना पड़ता है भाई
वीडी: प्वाइंट तो है
के: बीस्ट बोला है.. सब को चुप करा दिया
पीए: हम्म्मम... हम तुम्हारे साथ हैं बीस्ट
वीडी: मारवाड़ी-मारवाड़ी.. भाई-भाई.. हो गया ये भरत-मिलाप?
पीए: हाँ बस सीता मैया की कमी है.. राम भैया चाहते तो अभी सीता मैया भी यहीं होती।
वीडी: और स्साले तुम मैया-मैया कहके.. बैंया पकड़ लेते और सैंया बन जाते.. गंदे इंसान
पीए: हम बोले कुछ.. स्साले खुद हीं सोचते हो... रावण कहीं के.. चेहरे से भी रावण हीं लगते हो। वही सोचें कि स्साला वो पंजाबन तुमको इग्नोर काहे मारती है..
के: ये पंजाबन कौन है बे?
वीडी: ये एक बड़ी हीं... छोटी कहानी है.. एकदम साईज़ जीरो जैसी.. सुनके क्या करोगे..
पीए: स्साला सुनाने को कुछ हो तो सुनाएगा..
वीडी: वही तो हम कह रहे हैं.. एकदम चोंधर हीं हो
के: अब ये क्या होता है?
वीडी: भखभेलर जानते हो?
के: नहीं
वीडी: तब तुम नहीं समझोगे।
बीस्ट: काहे नहीं समझेगा?
वीडी: एकदम बकलोल हीं हो तुम। बचपन में जैसे एलकेजी यूकेजी होता था ना तो एलकेजी में पढे बिना यूकेजी में जाते नहीं थे और एलकेजी से पहले नर्सरी। तो तुमलोग नर्सरी में हीं "ए बी सी डी" रटे होगे।
बीस्ट: हाँ, लेकिन भख...भखभेलर और नर्सरी.. हम समझा नहीं
वीडी: वही तो समझा रहे हैं। ये सब हाई-फंडा बात है। टाईम दो थोड़ा।
पीए: हाँ मास्टरजी बताईये.. ट्रेन का जितना टाईम बचा है, सब खा जाईये। ....
वीडी: तो तुमलोग छठी क्लास तक जो अंग्रेजी पढे, उससे थोड़ा-सा ज्यादा सातवीं में पढे होगे।
के: यप्प..
पीए: आ गए ये अंग्रेज के नाती.. गुरू जी, आप रूकिए मत, लगे रहिए.. अंग्रेजी का बलात्कार कर डालिए। बिहारी होने के नाते आपका तो बर्थ-राईट है ये, माने कि जन्मसिद्ध अधिकार।
वीडी: मतलब कि ले लिए बिहारी की.. पीए स्साले..बताएँ कि नहीं?
पीए: मत बताओ...बताके कोई एहसान कर रहे हो क्या.. बक** पे बक** किए जा रहे हो और ये दोनों बेवकूफ़..
के: अरे वीडी.. बोलोगे.. पीए की क्या सुनने लगते हो
बीस्ट: हाँ बोलो.. वो क्या चोंधर
वीडी: हाँ तो अब ये सोचो कि हम लोग छठी में "ए बी सी डी" पढे थे और सातवीं में सीधे "कोंडिबा डेयरिंग डाईव" पढने को मिल गया। तुम लोग भी सातवीं में यही पढे होगे, लेकिन इतना "डेयरिंग" तरीके से नहीं। हम लोग तो सीधा "लांग जम्प" मारे।
के: मैं अभी भी नहीं समझा।
वीडी: अरे भखचोंधर.. यही तो हम बता रहे हैं कि तुमलोगों को जिस लेवल तक पहुँचने में 10 साल लगे मतलब कि नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी जोड़कर वहाँ तो हमलोग 1 साल में हीं पहुँच गए। तुमलोग ज्यादा टाईम लिए इसलिए तुमलोगों का माईंड इतना ग्रो नहीं हुआ..
बीस्ट: और तुमलोगों का तो पैराशुट जैसा ग्रो कर गया..हाँ ना? स्साले..
वीडी: हाँ.. अब समझ गए तुम..इसलिए हमलोग बहुत-सा ऐसा शब्द बना लिए, जिसका तुमलोग मतलब हीं नहीं जानते हो. अब जैसे कि चोंधर, भखचोंधर, भखभेलर, बुरबक..
के: इतना घुमा-फिराकर यही समझा रहा था?
पीए: हम पहले हीं बोले थे.. लेकिन तुमलोगों को तो गुरू जी से ज्ञान लेना था। तो गुरू जी, आपने अभी तक इन शब्दों का मतलब नहीं बताया।
वीडी: मतलब अभी भी जानना चाहते हो। चलो बता देते हैं। जैसे कि तुम पीए हो, हर जगह ट्राई करते रहते हो या फिर के को ले लो जो स्साला पीने के बाद फिलोशफ़र बन जाता है, तुम दोनों ये सोचते होगे कि बांडगिरी में तुम लोग मास्टर हो, लेकिन तुम्हारा हर जगह कटता है और के को तो हर किसी से गाली मिलती है.. तो तुमलोग जो आँख रहते हुए भी देख नहीं पाते उसी को चोंधरपना कहते हैं और इस कारण तुम लोग क्या हुए?
बीस्ट: चोंधर..
के: बीस्ट स्साले..
बीस्ट: और बाकी सब का मतलब?
वीडी: बाकी सबका ऊपर-ऊपर से मतलब बेवकूफ़ होता है.. अब अगर इतिहास जानना हो तो बोलो.. हम उदाहरण-सहित बता देंगे।
पीए: नहीं छोड़ दो.. हम समझ गए।
वीडी: गुड है।
पीए: इतना तो बकर कर दिए..लेकिन ये समझे कि ये "लांग जंप" के कारण हीं अंग्रेजी में तुमलोग अक्ल से पैदल हो।
वीडी: नहीं जानते थे... बताने के लिए शुक्रिया। स्साले.. हमको क्या लालटेन समझा है.. जानते हैं तभी तो बकर कर रहे थे। वो कहते हैं ना "हँसो, मुस्कुराओ, खुश रहो, क्या पता कल हो न हो" (एकदम शाहरूख खान के स्टाईल में, 180
डिग्री के एंगल पर)
के: शाहरूख खान के करण-अर्जुन तो पहले से हीं थे.. तुम स्स्साले तीसरे आए हो क्या?
पीए: शाहरूख का हो न हो..ताऊ का तो ये तीसरा.. दूसरा... पहला.. नहीं एकलौता पार्टनर तो है हीं।
वीडी: तुम कैसे जाने स्स्साले?
बीस्ट: जाने? मतलब की है.. बस बताना नहीं चाह रहा है।
पीए: अरे बता भी दो.. एक साल तक तुम दोनों एक हीं रूम में रहे हो.. क्या-क्या हुआ कौन जानता है।
वीडी: स्साले एक रूम में हमारा बस सामान था.. सोते हम लोग अलग-अलग थे।
के: ओए-होए... अलग-अलग.. कितना उदास होके बोला ये। क्यों भाई,पीए से शर्माते थे क्या?
वीडी: हाँ स्स्साल्ले.. बाल की खाल निकाल लो.. मतलब कि कुछ भी.. चलो छोड़ो.. ये स्साला ताऊ अभी तक आया क्यों नहीं?
पीए: तुम न आए, तेरी याद आ गई। होता है.. इतनी हीं याद आ रही है तो फोन कर लो।
वीडी: स्साले... याद नहीं आ रही... हाँ अगर आ भी रही है तो क्या कर लोगे?
पीए: कुछ नहीं... ये तुम्हारा रिश्ता है, हम कौन होते हैं बोलने वाले
बीस्ट: हाहाहाहा
वीडी: बढिया है.. मुँह पर सेलोटेप चिपका लो.. आगे से भी मत बोलना.. रूको हम ताऊ को फोन करते हैं।
वीडी (ताऊ से): स्साले ताऊ
ताऊ: क्या हुआ? टिकट चेकर पकड़ लिया क्या तुम लोगों को? फोन काहे किया?
वीडी: तुम वहाँ मुजरा देखने गया था क्या? अटक काहे गया?
ताऊ: हाँ अभी शो खत्म हुआ है.. बंदी पकड़ ली थी.. कही की ऐसे नहीं जाने देंगे। कैसे-कैसे करके हाथ छुड़ाके निकले हैं .. नहीं तो हम किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहते।
वीडी: क्या बक रहे हो?
ताऊ: स्साले तो तुम हीं न शुरू किए... हम आ रहे हैं अभी.. पाँच मिनट में
वीडी: रजनी और मणि मिल गए ना?
ताऊ: हाँ वो दोनों मखाऊ भी हैं साथ में... फोन रखो, हम पहुँचते हैं।

उसी दौरान स्लीपर डब्बे में (ताऊ से फोन पर बातचीत होने से पहले):

ताऊ (रजनी से, फोन पर): स्साले, तुम हो कहाँ?
रजनी: तुम कहाँ पहुँचे?
ताऊ: हम अभी स्ट्रीप क्लब में पहुँच गए हैं। स्साले.. कहाँ पहुँचेंगे.. स्लीपर में घुसे थे तो उसी में न पहुँचेंगे।
रजनी: अरे तो स्लीपर में कहाँ?
ताऊ: तुम बताओ कहाँ हो.. हम ढूँढ लेगें। तुम तो फट्टु हो साले.. जानकर क्या करोगे.. तुम बस अपना बता दो कहाँ हो।
रजनी: हम स्लीपर में बीच में हैं?
ताऊ: अच्छा.. सही है बेटा.. हम लोग ट्रेन मे धक्कम-धुक्की खा रहे हैं और तुम बीच भी पहुँच गए। वैस साले हम जंगल जा रहे थे ना.. तो ये बीच कहाँ से आ गया?
रजनी: पीजे मत मारो..
ताऊ: स्साले तुम्हारे कारण मच्छर मारने के दिन आ गए हैं.. अब पीजे मारने पर भी रोक लगा दो
रजनी: तुम आ रहे हो कि नहीं?
ताऊ: नहीं.. हम स्लीपर में भांगड़ा करने आए हैं.. अरे आ रहे हैं। इतनी भीड़ है भाई... स्साला डेली इतना आदमी यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ जाता है। एक जगह रहे तो सबका कितना कल्याण हो जाएगा... है ना?
रजनी: कल्याण सिंह के मौसेरे भाई... अभी फंडे मत दो
ताऊ: तुम अपना सीट नंबर बताओ.. कहाँ पर लुढके पड़े हो?
रजनी: खड़ा हैं भाई... हाँ चौथे कम्पार्टमेंट में हैं.. सीट नंबर 31-32 के पास।
ताऊ: ओके... आते हैं.. वहीं पर तशरीफ़ टिकाए रखना.. इधर-उधर भागना मत..
ताऊ (रजनी के पास जाकर): फाईनली मिल गए तुम... स्साले एक घंटे पहले-से तुमको ढूँढ रहे हैं.. किधर भी चढ जाते हो। चढने से पहले सोचना चाहिए ना.. कभी बीमारी के चपेट में पड़ोगे तो जानोगे।
रजनी: अब स्साला ये बीमारी कहाँ से आ गई?
ताऊ: आ गई बस.. हम बोल रहे हैं तो हम कुछ भी ले आएँ.. हमारी मर्ज़ी
रजनी: ओके.. तुम्हारी मर्जी.. तो अब क्या करना है?
ताऊ: करना क्या है.. मणि को कालापानी से बाहर निकालने चलते हैं.. वो स्साला किस ट्वाईलेट में घुसा हुआ है?
रजनी: उधर हीं.. जिधर से आए हो तुम
ताऊ: उधर दो है... दोनों में खटखटाएँगे क्या? स्साला कोई बहन जी निकलीं तो फिर..
रजनी: तो दूसरे में मणि होगा... सिंपल.. कौमन सेंस लगाओ।
ताऊ: कौमन सेंस इतना कौमन होता तो तुम अभी तक इतना स्पेशल थोड़े हीं होते... तारे ज़मीन पर के स्पेशल चाइल्ड सेंसलेस बातें मत करो। सही कहा गया है "दिखावे पे मत जाओ, अपनी अक्ल लगाओ"। स्साला देख के तो लगता है कि
बुद्धि का खान है, लेकिन कौन जाने कि मुखौटे के पीछे छुपा हुआ यह प्राणी कोई बुद्धू खान है।
रजनी: बोल लिए? अब चलें?
ताऊ: हाँ चलो.. हम तुमको बाँधकर रखे हुए हैं क्या? चलना क्या है दौड़ो.. जगह मिल जाए तो।
रजनी: तुम आगे चलो.. टिकट तुम्हारे पास है। टीसी उधर हीं खड़ा था।
ताऊ: किधर था.. हमको तो नहीं दिखा। साला हमको देखके रूप बदल लिया क्या..
रजनी: इधर हीं था.. गेट और ट्वाइलेट के बीच में
ताऊ: तो गया कहाँ? चलती ट्रेन से कूद गया? कि वो भी मणि के पीछे-पीछे अंदर घुसा हुआ है? अब तो मणि गया? अब तो वो भी गई? क्या होगा उसका? क्या होगा निम्मो का?
रजनी: निम्मो?
ताऊ: नाम नहीं ले सकते ना.. नहीं तो वो साला कहानी में घुसके मारेगा.. नहीं तो गुस्सा हो जाएगा.. इसलिए सीरियल का नाम ले लिए हैं। अब निप्पो बैट्री कहने से अच्छा है ना निम्मो कहना?
रजनी: तो कुछ और हीं कह लेते... जैसे कि पूजा, अर्चना, आ..
ताऊ: अरे..नहीं नहीं तौबा-तौबा.. ये सब तो आफिस में हीं है.. "रेपो" भी कोई चीज होता है।
रजनी: रेपो और तुम्हारा... तुम्हारे रेपो का तो रेप हो चुका है.. नहीं जानते हो?
ताऊ: जानते हैं.. छोड़ो.. अच्छा ये बताओ कि तुम कैसे जाने कि वो टीसी हीं था।
रजनी: इसमें जानना क्या है.. काला कोट पहना था और किसी से कुछ बकझक कर रहा था।
ताऊ: तुम किसको टीसी समझ गया था बे... हर काला कोट वाला टीसी नहीं होता... कुछ वकील भी होता है। हाहाहा
रजनी: वो टीसी हीं था।
ताऊ: पक्का.. फ्रीज़ किया जाए?
रजनी: स्साले.. जवाब की कुल्फी बनाओगे क्या?
ताऊ: तो तुम्हारे टीसी की कुल्फी बनाएँ? यहाँ तो कोई काला कोट वाला नही हैं..कहीं कोई भूत तो नहीं था ना।
रजनी: दिन में भूत
ताऊ: हाँ वो डे-शिफ्ट में काम करता होगा। ओवरटाईम.. उसकी भी तो बीवी होगी.. पगार के लिए झाड़ू से पीटती होगी।
रजनी: अच्छा.. अब समझे.. तभी.. जिसके बडी मे घोस्ट इंटर कर जाता है, उसकी झाड़ू से पिटाई की जाती है।
ताऊ: हाँ स्साले.. पीजे की भी टाँग तोड़ दो.. मज़ाक नाम की भी कोई चीज होती है.. सुने हो कि नहीं?
रजनी: चलो तो अगर टीसी नहीं है तो मणि को निकालते हैं बाहर।
ताऊ: ओके... तुम जाके ट्वाइलेट का दरवाजा खटखटाओ... देखो झांकना मत अंदर.. बैड मैनर्स
रजनी: हम काहे खटखटाएँ.. तुम जाओ.. तुम कुछ नहीं करोगे
ताऊ: स्साला.. हमको क्या पड़ी है.. टिकट तो है हीं हमारे पास
रजनी: तो मुझे कौन सा पागल कुत्ता काटा है.. तुम्हारे साथ हूँ तो अपना भी काम हो गया। नहीं खटखटाओगे तो छोड़ो।
ताऊ: स्साले.. यही दोस्ती यही प्यार, बीच में आ गई ट्वाइलेट की दीवार.. मतलब कि ट्वाइलेट का दरवाजा
रजनी: और तुम्हारा तो दोस्त तो वो है नहीं?
ताऊ: हमारा तो हैं हीं.. हम तो उसको निकाल हीं लेंगे.. लेकिन पहले तुम ट्राई करो.. पहले छोटे-मोटे लोग कोशिश करते हैं बाद में "द ग्रेट खली" तो है हीं
रजनी: खली और तुम... खुद को आईने में देखे हो?
ताऊ: आईना मुझसे मेरी पहली-सी सूरत माँगे.. इसलिए नहीं देखता.. और वैसे भी आईना हमारे लिए बना है कि हम आईने के लिए? तुम इन सब में दिमाग मत खपाओ, अपना काम करो.. मणि को फ्री करो।
रजनी: चलो मैं हार मान गया.. तुम हीं अपनी कोई ताऊपंथी दिखाओ।
ताऊ: हमको पता था। तुम किसी काम के नहीं हो। अब ये देखो.. इसे कहते हैं दूरध्वनि यंत्र यानि कि मोबाईल। इसमें नंबर डाला, फोन किया..
ताऊ (मणि से, फोन पर): मणि
मणि: हाँ ताऊ
ताऊ: निकल आओ बाहर.. रास्ता क्लिअर है.. दुश्मन सेना के सिपाही भाग गए हैं.. अब तुम्हें अपनी पीठ दिखाने की कोई जरूरत नहीं है..
मणि: क्या बोल रहे हो?
ताऊ: स्साले.. बोल रहे हैं कि अपने बिल से बाहर निकलो.. चूहे कहीं के.. टीसी चला गया है
मणि: अच्छा, निकलता हूँ.. बस दो मिनट.. हाथ-मुँह धो लूँ।
ताऊ: कर क्या रहे थे स्साले तुम अंदर..
मणि: अंदर आके क्या करते हैं?
ताऊ: करते तो बहुत कुछ हैं.. तुम क्या कर रहे थे? अच्छा छोड़ो.. निकलो जल्दी
रजनी (ताऊ से): स्साला वो अंदर खाना भी ले गया है शायद
ताऊ: शायद या पक्का
रजनी: जाने से पहले मुझे चिट्ठी लिखकर गया था क्या? मुझे क्या मालूम
ताऊ: अच्छा, तुमको नहीं लिखा था? हमको तो लिखा था.. लिखा कि हम शिट करने जा रहे हैं.. तुम लोग अब "ओ शिट", "ओ शिट" करते रहो.. ओ शिट
रजनी: ओ शिट
मणि: गुड गोविंग.. वैसे तुमलोग शिट को याद क्यों कर रहे हो?
ताऊ: हमारा रिलेटिव है.. हर दो-चार घंटे में हम याद कर लेते हैं। ये क्यों कर रहा है, हमको पता नहीं।
रजनी(मणि की हाथ खाली देखकर): मणि साले... खाने का क्या किया? अंदर बैठे-बैठे दोनों काम एक साथ कर रहा था क्या.. इनकमिंग-आउटगोविंग एक साथ?
ताऊ: ओ शिट
मणि: खाना? वो मेरे पास थोड़े हीं हैं।
ताऊ: तो टिकट की तरह खाने की भी स्टोरी चलेगी क्या? स्साला मैं एंटी-क्लाईमेक्स देख-देखकर बोर हो गया।
रजनी: मणि बता दे जल्दी... एक नई कहानी सुनने और सोचनी की हिम्मत नही बची।
मणि: चलो ठीक है... ताऊ.. एक और एंटी-क्लाईमेक्स
ताऊ: बको
मणि: जहाँ पर रजनी था, वहीं पर ऊपर वाले सीट पे मैंने खाना रखा था। जल्दी-जल्दी में वहीं पर भूल गया।
रजनी: पहली बार भूलकर तूने अच्छा किया है.. नहीं तो..
ताऊ: खुद को भी स्साले वहीं भूल गए होते तो और भी अच्छा होता ना। भगवान करे कि तेरे को भूलने की बीमारी लग जाए और तू ऐसे हीं खाना भूल जाया करे।
रजनी: आमीन!!
मणि: स्सालों... दुआ दे रहे हो कि बद्दुआ
ताऊ: तुमको जो लगे वही मान लो.. वैसे भी तुम्हारे मानने न मानने से क्या होता है। होगा तो वही जो तुम्हारी गर्लफ्रेंड मानेगी। है ना?
मणि: हम्म्म
ताऊ (फोन पर, वीडी से): क्या हुआ? टिकट चेकर पकड़ लिया क्या तुम लोगों को? फोन काहे किया?
रजनी: क्या हुआ?
ताऊ: जल्दी चलो, भक्तजन मेरी राह देख रहे हैं। स्साला.. फेमस होना भी कितना टेंशन का काम होता है.. ये मैनेज करो, वो मैनेज करो.. अरे पहले खाना ले लो वहाँ से.. मिला? मिल गया ना... अरे तो आओ इधर.. खाने पर पीएचडी करने बैठ गए क्या वहाँ? स्साले मखाऊ लोग..

फिर से जनरल डब्बे में(सारे फंटूश एक साथ):

वीडी: अच्छा ये बताओ कि गाईड फिल्म के गाने "गाता रहे मेरा दिल" में वहीदा रहमान साड़ी क्यों नहीं बदलती?
ताऊ: क्योंकि उसके पास तौलिया नहीं था।
वीडी: तौलिया? साड़ी बदलने के लिए तौलिया क्यों चाहिए। मतलब कि कुछ भी.. मुँह खोले और भक से बोल दिए।
ताऊ: तो उसके पास दूसरी साड़ी नहीं थी तो कैसे बदलती।
रजनी: बात में तो दम है।
वीडी: पीजे है भाई.. गाने का नाम लिया है तो कोई तो लिंक होगा.. ये एक्स्ट्रा डेटा नहीं है।
ताऊ: ओके.. साउंड्स गुड
के: गाना किसको याद है? जिसको भी याद है गाओ..
वीडी: स्साला.. किसी को भी याद नहीं है.. लगता है कि हमको हीं गाना होगा। "ओ मेरे हमराही मेरी बाँह थामे चलना, बदले दुनिया सारी तुम ना बदलना"।
बीस्ट: समझ गया..
पीए: गुड पीजे
मणि(पीजे पर पीजे सुनकर थक चुकने के बाद): ये हो क्या रहा है। साला मेरा सर दर्द करने लगा।
ताऊ: अब यहाँ तेरी गर्लफ्रेंड तो है नहीं जो सर दबाएगी। हम गला दबा सकते हैं दबा दें।
मणि: और भी कुछ दर्द कर रहा है.. वो दबा दो
ताऊ: सौरी.. सर्विस देने समय कंडिशन भी अप्लाईड है.. एक्स्ट्रा सर्विस चाहिए तो कुछ और भी देना होगा.. और वो तेरे से नहीं लूँगा
मणि: ताऊ स्साले।
वीडी: हमको कन्फ़ूजन हो रहा है
ताऊ: अब तुमको क्या हो गया बे। क्या कन्फ़्यूजन है? कि तुम लड़का हो कि लड़की? लड़की का कन्फ़्य़ूजन है तो टेस्ट करने के लिए हम रेडी हैं नहीं तो "के" के पास जाओ।
के: के
वीडी: नहीं स्सालों.. हमको कन्फ़ूजन हो रहा है कि ट्रेन चली किधर थी और जा किधर रही है..
पीए: तुमको पहुँचने से मतलब है ना..जिधर भी जाए.. तुम उतर कर ट्रेन को ठेलने वाले थोड़े हीं हो।
वीडी: फिर भी यह जा किधर रही है?
बीस्ट: हम जिधर मुँह करके खड़ा है, ट्रेन उधर हीं जा रहा है।
के: वाह! क्या बोला है बीस्ट
ताऊ: मतलब कि तुम जिधर मुँह करके खड़ा हो जाता है, ट्रेन उधर हीं चलने लगती है।
बीस्ट: हम ये कब बोला?
पीए: अभी तो बोला।
वीडी: तो अगर बीस्ट घूम जाए तो ट्रेन उल्टी चलने लगेगी।
पीए: और बीस्ट अगर लेट जाए तो ट्रेन तो रूक हीं जाएगी।
ताऊ: क्यों ऊपर क्यों नहीं जाएगी। बीस्ट है भाई.. ट्रेन ऊपर चली जाएगी।
पीए: ऊपर कैसे जाएगी.. ट्रेन तो पटरी पर हीं चलेगी ना..
के: लेकिन बीस्ट है... कुछ भी हो सकता है।
मणि: शायद कर्जत आने वाला है।
ताऊ: मणि जब भी बोलता है, काम की हीं बात बोलता है.. बोल लो जब तक मौका है, यहाँ से लौटने के बाद तो फिर सुनते हीं रहना है.. इसकी भी यही कहानी है इंग्लिश-हिन्दी भाई-भाई... सौरी इंग्लिश-हिन्दी ननद-भौजाई। "मणि, कैन यू ऐरेंज ए फ्लैट फौर मी".. "यस वाई नौट", "बट..कैन वी लीव टूगेदर..मिन्स लीव-इन".."नो..नेवर".. और मैडम जी का तेवर..
मणि: क्या बोल रहे हो ताऊ..
ताऊ: नहीं कुछ नहीं.. तुम्हारा गुण-गान कर रहा हूँ।
मणि: समझ गया मैं..
रजनी: सब लोग अपना-अपना सामान उठा लो। लग जाओ लाईन में..

आधे घंटे तक उसी लाईन में खड़े रहने के बाद:

वीडी: स्साला.. कौन बोला था कि कर्जत आ गया।
पीए(बीस्ट से): बीस्ट, घूम जाओ ना... ट्रेन रूक जाएगी।
ताऊ: हाँ स्साले बीस्ट घूम जा.. सामान उठाए-उठाए हाथ में मसल्स आ गए।
वीडी: और मेरे सर पे.. स्साला बड़ा भारी बैग है।
के: वहाँ पर घर बसाने जा रहा है क्या..?
वीडी: बसा लेता अगर बीस्ट या मणि या तू हीं अपनी गर्लफ़्रेंड लेकर आया होता।
मणि: स्साले.. फिर से..
रजनी: बीस्ट... बात मान.. रूकवा दे ट्रेन
बीस्ट: स्साला... रूकवा देता.. लेकिन तुम लोग हमारा पावर नहीं जानता है, घूमा तो ट्रेन एक्सीडेंट हो जाएगा।
सब लोग एक साथ: ऊऊऊऊऊऊऊओ..... जे बात..

आगे क्या हुआ..यह जानने के लिए पार्ट 4 का इंतज़ार करें।

-विश्व दीपक
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9 टिप्‍पणियां:

KK Mishra of Manhan ने कहा…

आनन्दित कर दिया भाई

Unknown ने कहा…

Excellent read ..... gud job !

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

विश्व दीपक ने कहा…

इस अनोखे सफर से जुड़े अनुभवों को पसंद करने के लिए.......सभी मित्रों का धन्यवाद।

-विश्व दीपक

श्रद्धा जैन ने कहा…

safar waqayi anokha hai
Mani ji andar se bahar aa hi gaye

taau ji ne theek kaha hoga wahi jo Girlfriend manegi

Random Thoughts...Random Connections.. ने कहा…

Once again an awesome read VD. But story ke end mein thoda climax aur chaiye. Aram se khatam ho gaya yeh episode. Aur Bhakchondhar ko jyada kheench diye. Newaz rest is all very very good. Mani ki achi maar rahe ho :)

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

पार्ट 4 का इंतज़ार है ....!!

विश्व दीपक ने कहा…

@didi to part 1 aur part 2 aapne padha ki nahi...... wo bhi padhiye :)
@rampuria is part mein mujhe samajh hi nahi aaya ki suspense kya daaloo.....agar kuchh daalta to bina matlab ka kheech jaata.
@heer ji Aap ki tippani yahaan dekhkar main bata nahi sakta ki mujhe kitni khushi ho rahi hai.. ab aapne kaha hai to jald hi part 4 aayega. :)

-Vishwa Deepak

Unknown ने कहा…

zabardast... zabardast....